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पंचाचाराधिकार ५। तान् जानीहि वायुजीवान् ज्ञात्वा परिहर्तव्याः ॥ २१२॥
अर्थ-सामान्य पवन, भ्रमता हुआ ऊंचा जानेवाला पवन, बहुत रजसहित आवाजवाला पवन, पृथ्वीमें लगता हुआ चक्करवाला पवन, गूंजता हुआ चलनेवाला पवन, महापवन, घनोदधि घनवात तनुवात-ये वायुकायिक जीव हैं । इनको जानकर इनकी हिंसाका त्याग करना चाहिये ॥ २१२ ॥
आगे वनस्पतिकायिक जीवोंको कहते हैं;मूलग्गपोरबीजा कंदा तह खंधबीजबीजरहा। संमुच्छिमा य भणिया पत्तेयाणंतकाया य ॥२१३ ॥
मूलाग्रपर्वबीजाः कंदाः तथा स्कंदबीजबीजरुहाः।। सम्मूर्छिमाश्च भणिताः प्रत्येका अनंतकायाश्च ॥ २१३ ॥
अर्थ-बनस्पतीके दो भेद हैं-प्रत्येक साधारण । एक शरीरमें एक जीव हो वह प्रत्येक वनस्पति है और एक शरीरमें अनंतजीव हों वह साधारण है, साधारणको ही निगोद कहते हैं और अनंतकाय भी कहते हैं । मूलबीज हलदी आदि, मल्लिका आदि अग्रबीज, ईख वेत आदि पर्वबीज, पिंडालू आदि कंदबीज, सल्लकी आदि स्कंधबीज, गेंहू आदि बीजबीज और सुपारी नारियल आदि संमूर्छन जीव ये सब प्रत्येक और अनंतकाय दो तरहके होते हैं ॥ २१३ ॥
आगे संमूर्छन वनस्पतिका स्वरूप कहते हैंकंदा मूला छल्ली खंधं पत्तं पवाल पुप्फफलं । गुच्छा गुम्मा वल्ली तणाणि तह पव्व काया य २१४
कंदो मूलं त्वक् स्कंधः पत्रं पल्लवं पुष्पफलं ।