________________
समाचाराधिकार ४ । विनय संयम इन सबमें आर्यिकायें तत्पर रहती हैं तथा ज्ञानाभ्यास शुभयोगमें युक्त रहती हैं ॥ १८९ ॥ अविकारवत्थवेसा जल्लमल विलित्तचत्तदेहाओ। . धम्मकुलकित्तिदिक्खापडिरूपविसुद्धचरियाओ १९०
अविकारवस्त्रवेशाः जल्लमलविलिप्तत्यक्तदेहाः। धर्मकुलकीर्तिदीक्षाप्रतिरूपविशुद्धचर्याः ॥ १९० ॥
अर्थ-जिनके वस्त्र विकाररहित होते हैं, शरीरका आकार भी विकार रहित होता है, शरीर पसेव व मलकर लिप्त है तथा संस्कार ( सजावट ) रहित है । क्षमादि धर्म, गुरु आदिकी संतानरूप कुल, यश, व्रत इनके समान जिनका शुद्ध आचरण है ऐसी आर्यिकायें होती हैं ॥ १९० ॥ अगिहत्थमिस्सणिलये असण्णिवाए विसुद्धसंचारे। दो तिण्णि व अजाओ बहुगीओ वा सहत्थंति॥१९॥ अगृहस्थमिश्रनिलये असंनिपाते विशुद्धसंचारे । द्वे तिस्रोवा आर्या बढयो वा सह तिष्ठति ॥ १९१ ॥
अर्थ-जहां असंयमी न रहें ऐसे स्थानों, बाधारहित स्थानमें क्लेशरहित गमन योग्य स्थानमें दो तीन अथवा बहुत आर्यिका एक साथ रहसकती हैं ॥ १९१ ॥ ण य परगेहमकजे गच्छे कजे अवस्स गमणिज्जे । गणिणीमापुच्छित्ता संघाडेणेव गच्छेज ॥१९२॥ न च परगेहमकार्ये गच्छेयुः कार्ये अवश्यं गमनीयं । गणिनीमापृच्छय संघाटेनैव गच्छेयुः ॥ १९२ ॥ अर्थ-आर्यिकाओंको विना प्रयोजन पराये स्थानपर नहीं