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मूलाचार
जाना चाहिये । यदि अवश्य जाना हो तो भिक्षा आदि कालमें बड़ी आर्यिकाको पूछकर अन्य आर्यिकाओंको साथ लेकर ही जाना चाहिये ॥ १९२॥
आगे अर्जिकाओंको इतनी क्रियायें नहीं करनी चाहिये;रोदणण्हाणभोयणपयणं सुत्तं च छव्विहारंभे । विरदाण पादमक्खणधोवण गेयं च ण य कुज्जा १९३ रोदनस्त्रपनभोजनपचनं सूत्रं च षड्विधारंभान् । विरतानां पादमृक्षणधावनं गीतं च न च कुर्युः ॥ १९३ ॥ अर्थ – आर्यिकाओंको अपनी वसतिकामें तथा अन्यके घर में रोना नहीं चाहिये, बालकादिकों को स्नान नहीं कराना | बालकादिकोंको जिमाना, रसोई करना, सूत कातना, सीना, असि मि आदि छह कर्म करना, संयमीजनोंके पैर धोना साफ करना रागपूर्वक गीत, इत्यादि क्रियाएं नहीं करना चाहिये ॥ १९३ ॥ तिण्णि व पंच व सत्त व अज्जाओ अण्णमण्णरक्खाओ। थेरीहिं सतरिदा भिक्खाय समोदरंति सदा ॥ १९४॥
तिस्रो वा पंच वा सप्त वा आर्या अन्योन्यरक्षाः । स्थविराभिः सहांतरिता भिक्षायै समवतरंति सदा ॥ १९४ ॥ अर्थ - अर्जिकायें भिक्षाकेलिये अथवा आचार्यादिकों की बंदनाकेलिये तीन व पांच व सात मिलकर जावें । आपसमें एक दूसरेकी रक्षा करे तथा वृद्धा अर्जिकाके साथ जावें ॥ १९४ ॥ आगे वंदना करनेकी रीति बतलाते हैं;
पंच छ सत्त हत्थे सूरी अज्झावगो य साधू य । परिहरिऊणज्जाओ गवासणेणेव वंदति ॥ १९५ ।।