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समाचाराधिकार ४ ।
पंच षट् सप्त हस्तान् सूरि अध्यापकं च साधूश्व । परिहत्य आयोः गवासनेनैव वंदते ॥ १९५ ॥
अर्थ-आर्यिकायें आचार्योंको पांच हाथ दूरसे उपाध्यायको छहहाथ दूरसे और साधुओंको सात हाथ दूरसे गौके आसनसे वैठकर वंदना करती हैं। आलोचना अध्ययन स्तुति भी करती हैं।॥१९५॥
आगे समाचारका फल कहते हैं;एवं विहाणचरियं चरंति जे साधवो य अज्जाओ। ते जगपुजं कित्तिं सुहं च लभृण सिझंति ॥ १९६ ॥
एवंविधानचर्या चरंति ये साधवश्व आयोः । ते जगत्पूजां कीर्ति सुखं च लब्ध्वा सिध्यति ॥ १९६ ॥ अर्थ-जो साधु अथवा आर्यिका इसप्रकार आचरण करते हैं वे जगतमें पूजा यश व सुखको पाकर मोक्षको पाते हैं ॥ १९६॥ ___ आगे ग्रंथकार अपनी लघुता दिखलाते हैं;एवं सामाचारो बहुभेदो वण्णिदो समासेण । वित्थारसमावण्णो वित्थरिदव्वो बुहजणेहिं ॥१९७॥
एवं समाचारः बहुभेदो वर्णितः समासेन । विस्तारसमापन्नो विस्तारयितव्यो बुधजनैः ॥ १९७॥
अर्थ-इसप्रकार मैंने संक्षेपसे बहुत भेदवाला समाचार अर्थात् आगमप्रसिद्ध अनुष्ठान बर्णन किया है, इसका विस्तारकथन बुद्धिमानोंको विस्तारित करना चाहिये ॥ १९७ ॥ इसप्रकार आचार्यश्रीवट्टकेरिविरचित मूलाचारकी हिंदीभाषाटीकामें समाचारोंको कहनेवाला चौथा समाचाराधिकार
समाप्त हुआ ॥ ४॥