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मूलाचार
आगे उस गच्छमें आगंतुक मुनि आर्यिकाओंके साथ कैसे वर्ते यह कहते है ;
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अनागमणे काले ण अत्थिदव्वं तहेव एक्केण । ताहिं पुण सल्लावो ण य कायव्वो अकज्जेण ॥ १७७ ॥ आर्यागमने काले न स्थातव्यं तथैवैकेन ।
ताभिः पुनः संलापो न च कर्तव्यो कार्येण ।। १७७ ॥
अर्थ - आर्या आदि स्त्रियोंके आनेके समय मुनिको बनमें अकेला नहीं रहना चाहिये और उनके साथ धर्मकार्यादि प्रयोजनके विना बोले नहीं । धर्मके निमित्त यदि कोई समय • बोलना हो तो संक्षेपवचन कहे ॥ १७७ ॥
तासिं पुण पुच्छाओ एक्कस्से णय कहेज एक्को दु । गणिणीं पुरओ किच्चा जदि पुच्छइ तो कहेदव्वं १७८ तासां पुनः पृच्छा एकस्या नैव कथयेत् एकस्तु | गणिनीं पुरतः कृत्वा यदि पृच्छति ततः कथयितव्यं १७८
अर्थ — उन आर्याओंमेंसे फिर एक आर्या कुछ पूछे तो निंदा के भयसे अकेला न कहे । यदि प्रधान अर्जिकाको अगाड़ी करके पूछे तो उसका उत्तर कहदेना चाहिये ॥ १७८ ॥ तरुणी तरुणी सह कहा व सल्लावणं च जदि कुज्जा । आणाकोवादीया पंचवि दोसा कदा तेण ॥ १७९ ॥
तरुणः तरुण्या सह कथा वा संलापं च यदि कुर्यात् । आज्ञाकोपादयः पंचापि दोषाः कृताः तेन ।। १७९ ।।
अर्थ — युवावस्थावाला मुनि जवान स्त्रीके साथ कथा व
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