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समाचाराधिकार ४ । विनयेनागमकार्य द्वितीये तृतीये वा दिवसे ॥ १६५ ॥
अर्थ-आगंतुक मुनि आनेके दिन मार्गका खेद छोड विश्राम ले, उसके वाद आचार्योंकी परीक्षा कर अर्थात् उनका श्रद्धान ज्ञान आचरण शुद्ध जान विनयसे दूसरे दिन व तीसरे दिन अपने आनेका प्रयोजन आचार्यको निवेदन करे अथवा आचार्यके शिष्य आगंतुक मुनिकी परीक्षाकर आचरणोंको तथा उनके प्रयोजनको कहें ॥ १६५ ॥ ___ आगे ऐसा निवेदन करनेसे आचार्य क्या करे उसे कहते हैं;आगंतुकणामकुलं गुरुदिक्खामाणवरसवासं च । आगमणदिसासिक्खापडिकमणादी य गुरुपुच्छा १६६
आगंतुकनामकुलं गुरुदीक्षामानवर्षावासं च । आगमनदिशाशिक्षाप्रतिक्रमणादयश्च गुरुपृच्छा ॥ १६६ ॥
अर्थ-आचार्य अन्यसंघसे आये हुए मुनिसे ये वात पूछे कि तुमारा नाम व गुरुकी संतान क्या है, दीक्षाके देनेवाले आचार्य कैसे हैं, दीक्षाको लिये हुए कितना समय हुआ, वर्षाकाल ( चौमासा ) कहां विताया, कोनसी दिशासे आये, कोंन २ से शास्त्र पढे हौ कोंन २ से सुने हैं, प्रतिक्रमण कितने हुए हैं। आदि शब्दसे तुमको क्या पढना है कितनी दूरसे आये हो इत्यादि जानना ॥ १६६ ॥
उसका उत्तर वह मुनि देवे उसका खरूप अच्छी तरह जानकर आचार्य क्या करे यह कहते हैं;जदि चरणकरणसुद्धो णिचुजुत्तो विणीद मेधावी। तस्सिटुं कधिद्व्वं सगसुदसत्तीए भणिऊण ॥१६७॥