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मूलाचार
जीवो अविरहितगुणः कर्तव्यः मोक्षमार्गे ॥ ८५॥
अर्थ—हे क्षपक जैसे चंद्रकवेध्यके निमित्त उद्यमी हुआ पुरुष अपने गुणका नाश नहीं करता-सावधान रहता है उसीतरह सम्यग्दर्शनादिरूप मोक्षमार्गमें उद्यमी हुआ जीव अपना गुण नहीं नाश करता ऐसा निश्चय कर ॥ ८५॥ ___ आगे चंद्रकवेध्यकर क्या किया उसे बतलाते हैं;कणयलदा णागलदा विजुलदा तहेव कुंदलदा । एदा विय तेण हदा मिथिलाणयरिए महिंदयत्तेण ८६ सायरगो बल्लहगो कुलदत्तो वड्डमाणगो चेव । दिवसेणिक्केण हदा मिहिलाए महिंददत्तेण ॥ ८७ ॥ कनकलता नागलता विद्युल्लता तथैव कुंदलता । एता अपि च तेन हता मिथिलानगर्या महेंद्रदत्तेन ॥८६॥ सागरको बल्लभकः कुलदत्तः वर्धमानकः चैव । दिवसेनैकेन हता मिथिलायां महेंद्रदत्तेन ॥ ८७ ॥
अर्थ-महेंद्रदत्तने मिथिलानगरीमें एक ही दिनमें कनकलता, नागलता, विद्युल्लता, कुंदलता स्त्रियोंको तथा सागरक, बल्लभक, कुलदत्त, वर्धमानक इन पुरुषोंको एक साथ ही मारा । इसलिये यतीको परमार्थ साधनमें समाधिमरणके समय यत्न करना चाहिये ॥ ८६ ॥ ८७ ॥ __ आगे यत्न किये विना जैसे लौकिक कार्य विगड़ता है उसी तरह यतिओंकाभी परमार्थ विगड़ जाता है यह कहते हैंजह णिजावयरहिया णावाओ वररदणसुपुण्णाओ। पट्टणमासण्णाओ खुपमादमूला णिबुडुति ॥ ८८॥