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मूलाचार
अर्थ - जो मरणकरनेवाला ऐसा हो - चेतन अचेतन परवस्तु में ममता ( मोह) नहीं हो, अभिमान रहित हो, क्रोधादिकषाय रहित हो, जितेंद्रिय हो अर्थात् विषयसुखोंसे उदासीन तथा अतींद्रियसुखमें लीन हो, पराक्रम सहित हो, शिथिल न हो, भोगोंकी वांछाकर रहित हो और सम्यग्दर्शनको अच्छी तरह प्राप्तहुआ हो । ऐसा जीव आराधक होसकता है ॥ १०३ ॥ आगे इसी बात को समर्थन करते हैं; - णिक्कसायरस दंतस्स सूरस्स ववसाइणो । संसारभयभीदस्स पच्चक्खाणं सुहं हवे ॥ १०४ ॥ निष्कषायस्य दांतस्य शूरस्य व्यवसायिनः । संसारभयभीतस्य प्रत्याख्यानं सुखं भवेत् ॥ १०४ ॥ अर्थ — ऐसे मुनिराज के आराधना सुखका निमित्त है - जो कि कषाय रहित हो, इंद्रियोंको वश करनेवाला हो, शूर हो कायर न हो, चारित्रमें उद्यमी - लीन हो और संसारके भयसे डरता हो चतुर्गतिके दुःखोंके खरूपको जानता हो । ऐसा मरण करने - वाला आराधनाका आराधक होसकता है ॥ १०४ ॥
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अब कथनको संकोचते हुए आराधनाका फल कहते हैं; - एदं पञ्चक्खाणं जो काहदि मरणदेसयालम्मि । धीरो अमूढसण्णो सो गच्छइ उत्तमं ठाणं ॥ १०५ ॥ एतत् प्रत्याख्यानं यः कुर्यात् मरणदेशकाले ।
धीरो अमूढसंज्ञः स गच्छति उत्तमं स्थानम् ॥ १०५ ॥ अर्थ — जो मुनि मरणके देशकालमें धैर्य सहित, आहारादिसंज्ञामें अलुब्ध हुआ ( आहारादिको नहीं चाहता हुआ ) इस