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मूलाचार
५६ पर्यंत जलपीनेका त्याग कियाथा उसके दोषोंकी शुद्धि करना है। यही प्रतिक्रमण मोक्षका कारण है ॥ १२० ॥ __आगे योग इंद्रिय शरीर कषाय हस्त पाद इनका भी प्रतिक्रमण कहागया हैपंचवि इंदियमुंडा वचमुंडा हत्थपायमणमुंडा। तणुमुंडेण य सहिया दस मुंडा वण्णिदा समए ॥१२१ पंचापि इंद्रियमुंडा वाग्मुडो हस्तपादमनोमुंडाः । तनुमुंडेन च सहिता दश मुंडा वर्णिता समये ॥ १२१॥
अर्थ-पांचों इंद्रियोंका मुंडन अर्थात् अपने २ विषयोंमें व्यापारका छुडाना, जैसे स्पर्शमें व्यापारका रोकना स्पर्शनेंद्रिय मुंड है इत्यादि; विना अवसर विना प्रयोजन वचन नहीं बोलना वह वचन मुंड, हाथकी कुचेष्टा नहीं करना वह हस्तमुंड, पैरोंको बुरीतरह संकोच व फैलानेरूप न करना वह पादमुंड, मनमें खोटा चितवन नहीं करना वह मनोमुंड और शरीरकी कुचेष्टा नहीं करना वह शरीरमुंड है-इसप्रकार दश मुंड जिनागममें वर्णन किये गये हैं ॥ १२१॥ इसप्रकार आचार्यश्रीवट्टकेरिविरचित मूलाचारकी भाषाटीकामें संक्षेपतरप्रत्याख्याननामा तीसराअधिकार समाप्तहुआ ॥ ३ ॥