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बृहत्प्रत्याख्यानसंस्तरस्तवाधिकार २। ३९ मनसे भी चितवन नहीं करने योग्य है तो तुझको शुद्धपरिणाम ही करना योग्य हैपुव्वं कदपरियम्मो अणिदाणो ईहिदूण मदिबुद्धी। पच्छा मलिदकसाओ सज्जो मरणं पडिच्छाहि ॥८३॥ पूर्व कृतपरिकर्मा अनिदानः ईहित्वा मतिबुद्धिभ्याम् । पश्चात् मलितकषायः सद्यो मरणं प्रतीच्छ ॥ ८३ ॥
अर्थ-हे क्षपक पहले तपश्चरण करनेवाला तथा इस लोक परलोकके सुखकी वांछा रहित हुआ तू प्रत्यक्ष परोक्ष ( अनुमान) ज्ञानसे आगमका निश्चय कर कषाय छोड़ता हुआ क्षमा सहित होके समाधिमरणका आचरण कर ॥ ८३ ॥ __ आगे आचार्य फिर भी क्षपकको शिक्षा देते हैं;हंदि चिरभाविदावि य जे पुरुसा मरणदेसयालम्मि । पुव्वकदकम्मगरुयत्तणेण पच्छा परिबडंति ॥ ८४ ॥
जानीहि चिरभाविता अपि च ये पुरुषा मरणदेशकाले । पूर्वकृतकर्मगुरुकत्वेन पश्चात् प्रतिपतंति ॥ ८४ ॥
अर्थ-हे क्षपक तू ऐसा समझ कि कुछ कम कोटि पूर्वकालतक भी जो तपश्चरण करते हैं:-बहुत समयतक भावना भाते हैं वेभी पहिले किये पापकर्मके भारसे मरणसंबंधी देशकालमें पीछे गिर जाते हैं रत्नत्रयसे रहित होते हैं। इसलिये तू सावधान हो ॥ ८४ ॥ तह्मा चंदयवेज्झस्स कारणेण उजदेण पुरिसेण । जीवो अविरहिदगुणो कादव्वो मोक्खमग्गम्मि ॥८५॥ तसात् चंद्रकवेध्यस्य कारणेन उद्यतेन पुरुषेण ।