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बृहत्प्रत्याख्यानसंस्तरस्तवाधिकार २। ३३ मिथ्यादर्शनरक्ता सनिदाना कृष्णलेश्यामागाढाः । इह ये नियंते जीवाः तेषां पुनः दुर्लभा बोधिः ॥ ६९ ॥
अर्थ-जो जीव अतत्त्वार्थश्रद्धानरूप मिथ्यादर्शनमें लीन हैं, आगामी आकांक्षारूप निदान सहित हैं और अनंतानुबंधी कषायसे रंजित योगकी प्रवृत्तिरूप कृष्णलेश्याकर सहित क्रूर परिणामी हैं ऐसे जीव मरण करते हैं उनके बोधि अर्थात् सम्यक्त्वसहित शुभ परिणाम होना दुर्लभ है ॥ ६९॥ ___ आगे अन्वयकर बोधिको कहते हैं;सम्मइंसणरत्ता अणियाणा सुक्कलेसमोगाढा । इह जे मरंति जीवा तेर्सि सुलहा हवे बोही ॥ ७० ॥
सम्यग्दर्शनरक्ता अनिदानाः शुक्ललेश्यामागाढाः । इह ये नियंते जीवाः तेषां सुलभा भवेत् बोधिः ॥ ७० ॥
अर्थ-जो जीव सम्यग्दर्शनमें लीन हैं (तत्त्वरुचिवाले हैं), इस लोक परलोक संबंधी भोगादिकोंकी इच्छा रहित हैं और शुक्ललेश्यारूप शुभ परिणामों सहित हैं उनके मरण समयमें बोधि होना सुलभ है ॥ ७० ॥ ___ आगे संसारके कारणका खरूप कहते हैं;जे पुण गुरुपडिणीया बहुमोहा ससबला कुसीला य । असमाहिणा मरंते ते होंति अणंतसंसारा ॥७१॥ ये पुनः गुरुप्रत्यनीका बहुमोहाः सशबलाः कुशीलाः च । असमाधिना म्रियंते ते भवंति अनंतसंसाराः ॥ ७१॥
अर्थ-जो आचार्यादिकोंसे प्रतिकूल हैं, बहुत मोहवाले हैं (रागद्वेषसे पीड़ित हैं), खोटे आचरणवाले हैं और खोटे शील
३ मूला.