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मूलाचार(व्रतरक्षा ) वाले हैं ऐसे जीव मिथ्यात्वसहित आर्त रौद्र परिणामोंकर मरण करते हुए दीर्घ संसारी होते हैं ॥ ७१ ॥ __ आगे अल्पसंसारवाले जीवोंका खरूप बतलाते हैंजिणवयणे अणुरत्ता गुरुवयणं जे करंति भावेण । असबल असंकिलिट्ठा ते होंति परित्तसंसारा ॥७२॥ जिनवचने अनुरक्ताः गुरुवचनं ये कुर्वति भावेन । अशबला असंक्लिष्टाः ते भवंति परीतसंसाराः ॥ ७२ ॥
अर्थ-जो पुरुष अर्हत भाषित प्रवचनमें अच्छीतरह भक्त हैं, आचार्यादि गुरुओंकी आज्ञाको भक्तिसे करते हैं मंत्र तंत्र शास्त्रपठनकी आकांक्षासे केवल नहीं, मिथ्यात्वकर रहित हैं और क्लेश रहित शुद्धपरिणामवाले हैं वे अल्पसंसारवाले होते हैं ॥७२॥ __ आगे जिनवचनमें अनुराग न हो तो क्या होता है उसका उत्तर कहते हैंबालमरणाणि बहुसो बहुयाणि अकामयाणि मरणाणि मरिहंति ते वराया जे जिणवयणं ण जाणंति ॥७३॥ बालमरणानि बहुशः बहुकानि अकामकानि मरणानि । मरिष्यति ते वराका ये जिनवचनं न जानंति ॥ ७३ ॥
अर्थ-जो जीव जिनदेव(सर्वज्ञ )के आगमको नहीं जानते हैं वे अनाथ बहुत प्रकारके बालमरण अर्थात् मिथ्यादृष्टि अज्ञानियोंके शरीरत्यागरूप खोटे मरण करते हैं और अभिप्रायरहित अनेक प्रकारके मरण पाते हैं ॥ ७३ ॥ __ आगे पूछते हैं कि बालमरण कैसे होता है उसको कहते हैं;सत्थग्गहणं विसभक्खणं च जलणं जलप्पवेसोय ।