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मूलाचार
अर्थ — मृत्युके समय सम्यक्त्वका विनाश होनेसे कांदर्प, आभियोग्य, कैल्विष, खमोह, आसुर-ये पांच देव दुर्गतियां होतीं हैं | इनका स्वरूप ऐसा है - शीलगुणमें उपद्रवरूप परिणामको कंदर्प कहते हैं, तंत्र मंत्र इत्यादिककर रसादिककी इच्छा वह अभियोग है, प्रतिकूल आचरण वह किल्विष है, मिथ्यात्वभावनामें तत्पर रहनेको संमोह कहते हैं और रौद्रपरिणाम सहित जिसके आचरण हों वह असुर है- उनके धर्मोंको गतियां कहते हैं ॥ ६३ ॥
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अब पहले कांदर्पदेवदुर्गतिका स्वरूप कहते हैं;असत्तमुल्लवयंतो पण्णाविंतो य बहुजणं कुणई । कंदप रइसमवण्णो कंदप्पेसु उवज्जेइ ॥ ६४ ॥
असत्यमुल्लपन् प्रज्ञापयन् च बहुजनं करोति । कंदर्प रतिसमापन्नः कांदर्पेषु उत्पद्यते ॥ ६४ ॥
अर्थ – जो मिथ्या ( झूठ ) वचन बोलता हुआ और असत्यवचन बहुत प्राणियों को सिखाता हुआ रागभावकी तीव्रता सहित कंदर्पभावको करता है वह जीव कंदर्पकर्मके योगसे नग्नाचार्य कंदर्प देवोंमें उत्पन्न होता है ॥ ६४ ॥
आगे आभियोगकर्मका स्वरूप और उससे उत्पत्ति होने का स्थान वर्णन करते हैं; --
अभिजुंजइ बहुभावे साहू हस्साइयं च बहुवयणं । अभिजोगेहिं कम्मेहिं जुन्तो वाहणेसु उवज्ञेइ ॥ ६५ ॥