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मूलाचार
क्षमे सर्वजीवान् सर्वे जीवा क्षमतां मम । .. मैत्री मे सर्वभूतेषु वैरं मम न केनापि ॥४३॥
अर्थ-मैं क्रोधादि भाव छोड़ शुभ अशुभ परिणामोंके कारणरूप सब जीवोंके ऊपर क्षमाभाव करता हूं और सब जीव मेरे ऊपर क्षमाभाव करो । मेरा सब प्राणियोपर मैत्रीभाव है किसीसे मेरा वैरभाव नहीं है ॥ ४३॥ ___ आगे कहते हैं कि मैं केवल वैरभाव ही नहीं छोड़ता किंतु जो जो वैरके निमित्तकारण हैं उन सभीको छोड़ता हूं;.. रायबंधं पदोसं च हरिसं दीणभावयं । उस्सुगत्तं भयं सोगं रदिमरदिं च वोसरे ॥ ४४ ॥
रागबंधं प्रद्वेषं च हर्ष दीनभावकम् ।
उत्सुकत्वं भयं शोकं रतिमरतिं च व्युत्सृजामि ॥४४॥ अर्थ-स्नेहबंध, अप्रीतिरूपभावना, आनंद, करुणाके कारण याचनारूप भाव, उत्कंठा, भय, शोक, रागभाव और इष्टवस्तुकी अप्राप्तिसे अरतिभाव-ये सब वैरभावके निमित्त कारण हैं। इसलिये इन सबको मैं छोड़ता हूं ॥ ४४ ॥
आगे फिर भी कहते हैंममत्तिं परिवजामि णिम्मत्तिमुवहिदो। आलंबणं च मे आदा अवसेसाई वोसरे ॥४५॥ ममतां परिवर्जयामि निर्ममत्वमुपस्थितः।
आलंबनं च मे आत्मा अवशेषाणि व्युत्सृजामि ॥४५॥ अर्थ-मैं ममताभावका त्याग करता हूं निर्ममत्व (परिग्रह