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मूलाचार
द्रव्ये क्षेत्रे काले भावे च कृतापराधशोधनम् । . निंदनगर्हणयुक्तो मनोवच:कायेन प्रतिक्रमणम् ॥ २६ ॥
अर्थ-आहार शरीरादि द्रव्यमें, वसतिका शयन आसन आदि क्षेत्रमें, प्रातःकाल आदि कालमें, चित्तके व्यापाररूप भाव (परिणाम )में किया गया जो व्रतमें दोष उसका शुभ मन वचन कायसे शोधना, अपने दोषको अपने आप प्रगटकरना, आचार्यादिकोंके समीप आलोचनापूर्वक अपने दोषोंको प्रगट करना वह मुनिराजके प्रतिक्रमण गुण होता है ॥ २६ ॥
आगे प्रत्याख्यानका खरूप कहते हैं;णामादीणं छण्णं अजोग्गपरिवजणं तिकरणेण । पञ्चक्खाणं णेयं अणागयं चागमे काले ॥२७॥ नामादीनां षण्णां अयोग्यपरिवर्जनं त्रिकरणैः । प्रत्याख्यानं ज्ञेयं अनागतं चागमे काले ॥ २७ ॥
अर्थ-नाम स्थापना द्रव्य क्षेत्र काल भाव इन छहोंमें शुभ मन वचन कायसे आगामी कालके लिये अयोग्यका त्याग करना अर्थात् अयोग्य नाम नहीं करूंगा, न कहूंगा और न चिंतवन करूंगा इत्यादि त्यागको प्रत्याख्यान जानना ॥ २७ ॥ ___ आगे कायोत्सर्गका स्वरूप कहते हैं;देवस्सियणियमादिसु जहुत्तमाणेण उत्तकालम्हि । जिणगुणचिंतणजुत्तो काओसग्गो तणु विसग्गो ॥२८॥
दैवसिकनियमादिषु यथोक्तमानेन उक्तकाले । . जिनगुणचिंतनयुक्तः कायोत्सर्गः तनुविसर्गः ॥२८॥ अर्थ-दिनमें होनेवाली दैवसिक आदि निश्चय क्रियाओंमें