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कर्म आने के पाँच आस्रव द्वार
भवन के पाँच द्वार खुले रखने का परिणाम
किसी भवन के पाँच दरवाजे हों और वे पाँचों दरवाजे ग्रीष्मऋतु में बाहर की सुखद वायु और ठंडक का सुखद स्पर्श पाने के लिए खोल दिये जायें। बाहर की हवा में उष्णता है, लू चल रही है, साथ ही एकाएक गर्म हवाएँ भी चल रही हैं, इसका भान भवन बैठे हुए व्यक्ति को हो तो क्या परिणाम आता है ?
परिणाम यह आता है कि वे गर्म हवाएँ उन खुले हुए दरवाजों से आकर उस भवन को भी गर्म कर देंगी, और भवन में बैठे हुए व्यक्ति को गर्मी से व्याकुल और पसीने से तरबतर कर देंगी। साथ ही वे गर्म हवाएँ अपने साथ धूल और कचरा भी उड़ाकर लाएँगी, जिससे भवन में धूल, कचरा और तिनके आदि हवा के साथ-साथ आते रहेंगे और उस भवन को तथा भवन में बैठे हुए व्यक्ति को धूल, कचरे आदि से भर देंगी । भवन की सारी चमक-दमक और शोभा मलिन हो जाएगी।
सांसारिक जीवों द्वारा मिथ्यात्वादि पाँचों आम्रवद्वार खुले रखने का परिणाम
आत्मारूपी भवन का मालिक सांसारिक जीव भी भवन के पाँचों द्वार खोलकर बैठा है; संसार के विषय सुखों की सुखदायी लगने वाली वायु के स्पर्श के लिए । यद्यपि वह आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक इस त्रिविध ताप से संतप्त है, किन्तु उस ताप को शान्त करने का सही तरीका मालूम न होने से सांसारिक वासनाओं की हवाएँ लेने के लिए आतुर रहता है, उन्हीं को सुखदायक एवं शाक्तिदायक समझता है, परन्तु पाँचों द्वार खुले होने से ' कषाय, प्रमाद, मिथ्यात्व, अव्रत और योग की आंधियाँ सहसा प्रविष्ट होकर कर्मों की धूल और कचरा ले आती हैं, जीव को तमसाच्छन्न कर देती हैं, ज्ञानादि से प्रकाशमान आत्मा को अज्ञान तमसाच्छन्न कर देती हैं।
साधनापरायण व्यक्ति पाँचों आम्रवद्वारों को खोलने में सावधान
जो साधनापरायण व्यक्ति ‘पंचासव-परिण्णाया तिगुत्ता' अर्थात्-पाँच आनावों
समवायांग, ५वां समवाय में इसी प्रकार का पाठ है।
9.
२. दशवैकालिक सूत्र अ. ३ गा. ११
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