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६४२ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आनव और संवर (६)
(५) क्रिया की उपयुक्तता-अनुपयुक्तता (Rationality of action)इस क्रिया को उसने क्यों किया? इसके अन्तर्गत भी तीन पहलू हैं-(अ) कारणता (Cause) इसे करने के पीछे क्या कारण था?, (आ) पूर्णता (Finality)किस उद्देश्य (aim) से उसने इसे किया? तथा (इ) अभिप्रायता (Intentionality)-किस प्रेरणा से, या किस अभिप्राय से उसने यह क्रिया की? ___"क्रिया की प्रकारता-क्रिया के विशेषणों से ज्ञात हो जाती है और प्रकारता के आधार पर कर्ता की मानसिक स्थिति का पता लग जाता है। क्रिया की परिस्थिति सन्दर्भ का निर्धारण-पर्यावरण, काल, स्थान एवं परिस्थिति के आधार पर किया जाता है। कर्ता ने क्रिया क्यों की? इस प्रश्न की व्याख्या में कारणता, पूर्णता एवं प्रेरणा का ध्यान रखा जाता है।'
"..." व्यक्ति के प्रत्यय (जिसके अन्तर्गत दैहिक और मानसिक पहलू हैं) के समान क्रिया के भी वाह्य (दैहिक और निरीक्षणीय) तथा आन्तरिक (मानसिक एवं अन्तर्निरीक्षणीय) परस्पर सम्बद्ध पहलू (प्रत्यय) हैं। क्रिया के बाह्य पहलू का सम्बन्धउसने क्या किया?, कैसे किया? तथा किन परिस्थितियों में किया ? से है; जबकि आन्तरिक पहलू का सम्बन्ध उसकी मानसिक स्थिति (विचार, अभिप्राय, प्रेरणा आदि)
_ "वस्तुतः कर्ता ने क्या किया? और क्यों किया? में भेदरेखा-अर्थात-क्रिया के वर्णन (description) एवं मूल्यांकन के बीच विभाजन रेखा खींचना सिद्धान्ततः सम्भव भी है और व्यावहारिक रूप से वांछनीय भी है। . जैनकर्मविज्ञान में भी क्रिया के पीछे प्रकार, पद्धति, भावादि द्वारा शुभाशुभ कर्म की मान्यता
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कतिपय पाश्चात्य दर्शनों ने जैनकर्मविज्ञान द्वारा मान्य शुभ-अशुभ क्रियाओं से होने वाले पुण्य-पापानव के सिद्धान्त की पुष्टि की है। जैनकर्म-विज्ञान भी कर्ता के द्वारा की जाने वाली केवल क्रियाओं को शुभाशुभ कर्म के आसव का कारण नहीं मानता, अपितु क्रियाओं को कायिक, वाचिक एवं मानसिक तीन रूपों में विभाजित करके फिर उसके पीछे क्रिया के प्रकार, क्रिया करने की पद्धति (तीव्रता, मन्दता, जाने-अाजाने, तथा साधनों के प्रकार १. (क) वही, पृ. २२१ (ख) Nicholas Rescher-“On the Characterization of Actions.” "The
Nature of Human Action." Edited by-Myles Brand, P. 247-54 २. जिनवाणी कर्म सिद्धान्त विशेषांक में प्रकाशित-'पाश्चात्य दर्शन में क्रिया सिद्धान्त' लेख से,
पृ. २२२
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