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मनःसंवर की साधना के विविध पहलू ८५९ के अभ्यासी जन विषयसुखों को आत्मिक सुखों-(आत्मानन्द अथवा परमात्मानन्द) में लगा सका.. .. .... मानसिक सुखोपभोग के समय आत्मसुखप्राप्ति की शक्ति सुरक्षित रहे ___ऐसे श्रमणोपासक गृहस्थ के लिए व्रतों के पालन के साथ-साथ यह भी बताया गया है कि सुख-साधनों का उपभोग करते समय इस बात का ध्यान रखो कि उनके उपभोग से तुम्हारा शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य नष्ट न हो जाए, तुम्हारा आत्मिक विकास रुके नहीं, बल्कि उत्तरोत्तर प्रगति पर हो। शारीरिक सुखों का उपभोग भी इस प्रकार हो, जिससे धर्म-नीतियुक्त मानसिक सुखों के उपभोग की क्षमता तुममें बनी रहे, तथा मानसिक सुखों का उपभोग भी इस प्रकार करो कि आत्मिक सुखों को प्राप्त करने की तुम्हारी शक्ति सुरक्षित रहे। सुखोपभोग के पीछे इस प्रकार न पड़ो कि वह तुम्हारी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति को ही चौपट कर दे। जूआ, चोरी (डकैती, लूटपाट, तस्करी), मांसाहार, शिकार, मद्यपान, वेश्यागमन और परस्त्रीगमन, इन सात कुव्यसनों का सेवन करके मन पर संयम करना चाहे तो असम्भव है। इसलिए इन सप्त कुव्यसनों का त्याग मनःसंयम के लिए अनिवार्य बताया गया है। अर्थ और काम का सेवन भी धर्म-मर्यादा में हो ..
- 'अर्थ (पदार्थों) और काम के सेवन के लिए भी धर्मनीति के नियमों की सीमा इसलिए निर्धारित की गई है कि मनोनिग्रहाभ्यासी मानव सर्वोच्च आत्मिक आनन्द के लिए अपने को सुरक्षित रख सके। वैसे जैनागमों और गीता में कामभोगों को तथा संस्पर्शज भोगों को दुःखों के बीज बताये हैं, वे क्षणमात्र के लिए सुखकारक भले ही हों, चिरकाल तक दुःख और संताप देने वाले हैं। .. . मनोनिग्रह के लिए मन का उन्नयनीकरण ... वैदिक दृष्टि से मनोनिग्रह के अभ्यासी के लिए उच्छृखल ऐन्द्रिय सुखों की लालसा
का त्याग करने का विधान किया, यानी उसे आत्मविकास के चौखटे में बिठाकर मन का उदात्तीकरण-उन्नयनीकरण करने का विधान किया गया है।
१. विस्तृत विवेचन के लिए देखें-श्रावक धर्म दर्शन (उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी) में चार शिक्षाव्रतों . की व्याख्या .. २. (क) मन और उसका निग्रह (स्वामी बुधानन्द) से भावांश ग्रहण, पृ. १५, १६ । - (ख) Saying of Sri Ramkrishna (श्री रामकृष्ण मठ ; मद्रास) पृ. २४४-२४५ ३. (क) ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते।
-गीता ५/२२ (ख) "खणमित्तसुखा बहुकालदुक्खा
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-उत्तराध्ययन
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