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८६० कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आनव और संवर (६)
श्री रामकृष्ण परमहंस मन के उन्नयनीकरण के लिए कहते हैं - आनन्द तीन प्रकार के होते हैं - विषयानन्द, भजनानन्द और ब्रह्मानन्द। जिसमें अधिकांश लोग सदा लिप्त रहते हैं, जो कामिनी और कांचन का आनन्द है, उसे विषयानन्द कहते हैं। ईश्वर a नाम का गुणगान करने से जो आनन्द मिलता है, उसका नाम है- भजनानन्द और ईश्वर (परमशुद्ध) आत्मा के दर्शन में जो आनन्द मिलता है, उसका नाम है- ब्रह्मानन्द। उन्नयनीकरण का सही अर्थ : आत्मसुखों की ओर आकर्षण व प्रस्थान
उन्नयनीकरण का अर्थ है-आनन्द के इन तीन स्तरों में से नीचे के स्तर से ऊपर के स्तर में जाना। इस प्रकार मन का उन्नयनीकरण करने से सुखोपभोग की लालसा ब्रह्मानन्द में परिवर्तित हो जाएगी । विषयानन्द का आकर्षण तभी खत्म होता है, जब मनुष्य परमात्मा (अपनी शुद्ध आत्मा) में निहित अनन्त आनन्द और सुख की चरम सीमा देखने लगता है। जो आत्मिक या परमात्मिक आनन्द (सुख) में तल्लीन हो जाएगा, उसे सांसारिक सुखों में कोई आकर्षण मालूम नहीं होगा।
रामकृष्ण परमहंस के शब्दों में- " जिसने एक बार मिश्री चख ली है, उसे मैली राब में भला कौन-सा सुख मिल सकता है ? जो राजमहल में सो चुका है, उसे गंदी झुग्गी में सोने में क्या आनन्द मिलेगा ? जिसने एक बार दिव्यानन्द (ब्रह्मानन्द्र) का रसास्वादन कर लिया है, उसे संसार के तुच्छ विषयभोगों में कोई रस नहीं मिलता।"" उच्छृंखल कामसुख-लालसा मनः संवर में अत्यन्त बाधक
ऐसे लोगों को सुखोपभोग की लालसा से जूझते समय गलत ढंग से संघर्ष नहीं करना चाहिए। जैसे कि कई कलियुगी योगी या तथाकथित भगवान् कहते हैं-इन्द्रियों को विषयोपभोग से शान्त (समाधि) करने के लिए खुली छोड़ दो। इस प्रकार विषय-सुखों का आनन्द लूटने में मन का उदात्तीकरण नहीं, स्वच्छन्दीकरण है।
- ऐसे लोग नैतिकता - अनैतिकता, मर्यादा- अमर्यादा का कोई विचार न करने का कहते हैं। राजस्थान में कुण्डापन्थ, कांचलियापंथ आदि इसी प्रकार के उच्छृंखल कामसुख-लालसा के प्रतीक हैं।
सूत्रकृतांग सूत्र में भी मन में उत्पन्न कामपीड़ा की शान्ति के लिए इसी प्रकार के एक उच्छृंखल मत का उल्लेख किया गया है। परन्तु ऐसे स्वच्छन्दकामभोग-सेवन से मन की स्थिरता के बदले मन में कामाग्नि अधिकाधिक उद्दीप्त होती है।
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(क) म. कृत रामकृष्णवचनामृत भा. २, पृ. २०३-२०४
(ख) एविंदियत्था य मणस्स अत्था, दुक्खस्स हेउं मणुअयस्स रागिणो । ' - उत्तरा . ३२ / १०० देखें- आ. रजनीश लिखित सम्भोग से समाधि, तथा तान्त्रिक परम्परा में पंचमकार का उल्लेख, एवं सेक्स साइकोलॉजी के प्रखर पुरस्कर्ता 'फ्रायड' के ग्रन्थों में मन के स्वच्छन्दीकरण का विवरण ।
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