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अध्यात्मसंवर की सिद्धि : आत्मशक्ति
सुरक्षा और आत्मयुद्ध से
प्राप्त शक्तियों का दुरुपयोग या अनुपयोग, दोनों ही शक्तिनाश के कारण
किसी व्यक्ति के पास प्रचुर मात्रा में पौष्टिक पदार्थ हों, किन्तु वह उसके उपयोग करने की विधि न जानता हो, अथवा वह लोभवश उसका अत्यधिक उपयोग कर लेता हो, अथवा उस पौष्टिक पदार्थ के सेवन की विधि जानता हुआ भी वह उसका उपयोग बिलकुल न करता हो, उसका परिणाम यह होगा कि उस पौष्टिक पदार्थ से होने वाले लाभ से वह बिलकुल वंचित हो जाएगा। अत्यधिक एवं अविधिपूर्वक सेवन से वह उसे पचा नहीं पाएगा, फलतः उससे शक्ति प्राप्त होने के बदले अजीर्ण, अपच या अन्य रोग उसके शरीर पर आक्रमण करके उसकी रही-सही शक्ति को भी नष्ट कर देंगे। . ठीक यही स्थिति आत्मिक शक्ति के विषय में है। प्रत्येक आत्मा में निश्चयदृष्टि से अनन्त शक्ति है, वह उस शक्ति का अध्यात्म-संवर की विधि से उपयोग करना ही न जाने, अथवा पूर्वजन्मकृत क्रूर कर्मों में शक्ति के दुरुपयोग के कारण उसकी अनन्तशक्ति पर सघन आवरण छा गया हो, जिससे वह उसे प्राप्त ही न कर सके या उपयोग ही न कर सके, अथवा मनुष्यजन्म प्राप्त करने से उसे प्रचुर शक्ति प्राप्त हो तो भी वह उसका उपयोग न करे, अथवा भलीभांति उपयोग करना न जाने, अथवा उपयोग करना जानते हुए भी उसका उपयोग न करे,या हिंसादि क्रूर कमों में शक्ति लगाकर उस प्राप्त शक्ति का दुरुपयोग करे तो उसकी वह शक्ति या तो कुण्ठित, क्षीण या नष्ट हो जाएगी,या फिर वह उस अमूल्य शक्ति को पचा न पाने के कारण व्यर्थ ही नष्ट करके भविष्य में उस शक्ति की प्राप्ति से वंचित हो जाएगा। अनन्तशक्तिघन आत्मा की शक्तियों का दुरुपयोग और सदुपयोग कब और कैसे होता है? ____ आत्मा का चौथा निजी गुण है-अनन्तशक्ति (वीर्य)। किन्तु अध्यात्म-संवर-प्रधान दृष्टि वाले मानव जहाँ स्वयं को प्राप्त या उपार्जित शक्तियों का उपयोग सम्यग्दर्शनज्ञान-चारित्र-तप की साधना में या अहिंसादि पांच व्रतों तथा संयम, यम-नियम के पालन
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