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• १०१६ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आनव और संवर (६).
तदनन्तर संचित आत्म शक्ति से अध्यात्म संवर की साधना करके या तो सर्वथा कर्ममुक्त हुआ जा सकता है या आंशिक (देश) संवर सरागसंयम के द्वारा देवलोक भी प्राप्त हो सकता है।'
अध्यात्म संवर के सन्दर्भ में आत्मशक्ति संचय के चार मूलाधार
आत्मशक्ति का संचय करने के लिए अध्यात्मसंवर की साधना आवश्यक है। सामायिक (समभाव ) की पौषध की तथा देशावकाशिक व्रत की साधना अध्यात्मसंवर की ही साधना है। ध्यान, मौन, कायोत्सर्ग, बाह्य आभ्यन्तर तप आदि भी इसी साधना के अंग हैं। अध्यात्मसंवर की साधना के सन्दर्भ में आत्मशक्ति-संचय के चार मुख्य आधार भी मनीषियों ने बताए हैं- (१) दृढसंकल्प (नियम- व्रत-बद्धता), (२) प्रचण्ड मनोबल, (३) दृढविश्वास और (४) सत्श्रद्धा
आत्मशक्ति संचय का प्रथम मूलाधार दृढ़ संकल्प
दृढसंकल्प का अर्थ है- व्रत या नियम-मर्यादाओं में आबद्ध होना, प्रतिज्ञाबद्ध होना । जो निश्चय कर लिया, उसे क्रियान्वित करने की साहसिकता अक्षुण्ण रखना।
घटिया स्तर के लोगों में चंचलता और अस्थिरता बनी रहती है। वे बन्दर की तरह देर तक किसी सत्कार्य में, अहिंसादि संवर के पथ में टिके नहीं रहते। एक को छोड़कर दूसरे कार्य में लग जाते हैं। कुविचारों और कदाचारों का आकर्षण सर्वविदित है। निम्नकोटि के मार्ग में मनुष्य का मन देर तक टिका रहता है, क्योंकि उससे शीघ्र मनोरथ पूर्ण होने की तृष्णा जुड़ी रहती है। उत्कृष्टता के मार्ग पर - अध्यात्मसंवर के मार्ग पर चलने पर अदृश्य तथा आन्तरिक सफलता मिलने की बात स्थूलबुद्धि को सहसा विशेष आकर्षक नहीं लगती। तत्काल फल मिलने की आशा धूमिल होते ही उसका धैर्य जवाब दे जाता है और झटपट वह उस श्रमसाध्य और समयसाध्य अध्यात्मसंवर के मार्ग को छोड़ बैठता है ।
माली को फलेफूले बगीचे की, विद्यार्थी को स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने की और व्यवसायी को धनवान् बनने की प्रतीक्षा धैर्यपूर्वक करनी पड़ती है। अपनी दीर्घकालीन साधना में अटूट धैर्य और दृढ़निश्चय के साथ लगा रहना पड़ता है। इसी प्रकार अध्यात्म संबर के पथ पर चलते हुए शाश्वत सुख प्राप्त हो सकता है, इस निश्चय के साथ साधक को दृढसंकल्प पूर्वक आत्मशक्ति संचय में जुटे रहना चाहिए। यही आत्मशक्ति संचय का प्रथम मूलाधार है।
आत्मशक्ति संचय का द्वितीय मूलाधार : प्रचण्ड मनोबल
द्वितीय मूलाधार है- प्रचण्ड मनोबल। अध्यात्म संवर के मार्ग में संचित कुसंस्कार
१. चेतना का ऊर्ध्वारोहण से भावांश ग्रहण, पृ. १६
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