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१०२८ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आनव और संवर (६)
लोग केवल श्रद्धा के सहारे न चलकर "प्रज्ञा से (इस संवर निर्जरा रूप) धर्म तत्व की.. समीक्षा करें "" बाह्य संघर्षों की वृत्तियों को, आन्तरिक संघर्ष में परिणत कर दें, जिससे आनवपथ से हटकर संवरपथ पर सरपट गति कर सकें। इस विषय में मनोविज्ञान सम्मत विधियाँ भी पूरक या सहायक हो सकती
अध्यात्मविज्ञान की दृष्टि से अध्यात्मसंवर में सहायक पूर्वोक्त आत्मयुद्ध सातः प्रकार से हो सकता है। वे सात प्रकार इस प्रकार हैं- (१) दमन, (२) शमन (३) उदात्तीकरण (४) समत्व में स्थिरीकरण (५) प्रतिक्रमण, (६) प्रत्याख्यान (त्याग) और (७) सतत आत्मस्वरूप स्मृति ।
आत्मयुद्ध का पहला प्रकार दमन है। दमन का अर्थ है - दबाना। इसे नियंत्रण भी कहा जा सकता है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में इसे अवदमन (रिप्रेशन) कहा गया है। वृत्तियों का अवदमन होने से मनुष्य व्यावहारिक दृष्टि से बहुत-सी बुराई से बचा रहता है। दवाब : मुख्यतया तीन प्रकार के माने गए हैं-राजनैतिक दमन, सामाजिक दमन एवं आध्यात्मिक दमन ।
राजनैतिक दमन का उत्कट रूप दण्ड है, अथवा दण्डशक्ति के भय से व्यक्ति कानून के नियंत्रण में चलता है, यह भी राजनैतिक दमन है। परिवार, ग्राम, नगर, जाति, धर्म-सम्प्रदाय (संघ), आदि सब समाज के घटक हैं। सामाजिक दमन के अन्तर्गत समाज में निर्धारित नीति-न्याय की मर्यादा का पालन प्रत्येक व्यक्ति को करना अनिवार्य होता है। कोई व्यक्ति किसी राह चलती युवती को देखकर सहसा उसके प्रति कदाचित मुग्ध हो -जाए, फिर भी सामाजिक मर्यादाओं के कारण वह उसके साथ किसी प्रकार का स्वच्छन्दतापूर्वक अनाचार सेवन नहीं कर पाता। सामाजिक दवाब जो हैं।
एक कुलीन और सम्भ्रान्त परिवार का युवक है, उसके परिवार में मांसाहार सर्वथा वर्ज्य है। उसके मन में कदाचित मांस खाने का विचार आए, किन्तु दूसरे ही क्षण यह भाव पैदा होता है कि मेरे परिवार में यह त्याज्य है, यदि कोई देख लेगा तो ? इस प्रकार सामाजिक दवाब के कारण उसे अपनी इच्छा को दबाना पड़ा। सामाजिक दमन के कारण वह अपना मनमाना आचरण नहीं कर पाता। अपनी वृत्ति अवदमित करनी पड़ती है।
सेंध मारकर किसी का धन चुराने की इच्छा होने पर भी राजकीय दमन (दवाब) के कारण उसे अपनी इच्छा को वहीं दबाना पड़ता है। मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में यह वृत्ति का अवदमन है। आध्यात्मिक जगत् में अध्यात्मसेवर की दृष्टि से भी दमन की बात मान्य है।
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१. तुलना करें - "पत्रा समिव धम्मं तवं तत्तः विणिच्किये। -उत्तराध्ययन अ. २३, गा. २४ २. अभ्युदय से बकिंचिद् भाव ग्रहण, पृ. १५८-१५९
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