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प्राणबल और श्वासोच्छ्वास- बलप्राण- संवर की साधना ०७१
श्वास-संवर से कषाय-संवरादि तथा मनः संवर भी होता है
इस पर से यह तथ्य फलित होता है कि प्राणायाम द्वारा श्वास को नियंत्रित, शान्त और स्थिर करने, श्वास की चाल को अत्यन्त धीमी करने से श्वाससंवर भी होता है, और साथ ही कषाय संवर, आदि से सम्बद्ध मैन:संबर भी होता है। क्योंकि श्वास जितना तेज चलेगा, उतनी ही शरीर में गर्मी बढ़ेगी, मन भी उत्तेजित, चिड़चिड़ा और आवेशयुक्त होता जाएगा।
योगविद्या विशारदों का कहना है कि यह तन-मन की गर्मी में वृद्धि और श्वास की गति में तीव्रता दोनों ही जीवन का जल्दी अन्त करते हैं। भूतकाल में मनुष्यों के श्वास का अनुपात ११-१२ बार प्रति मिनट था, अब वह बढ़कर १५-१६ या प्रायः १८ बार प्रति मिनट तक पहुँच गया है। इसी अनुपात से मनुष्य की आयु भी घट गई है। इसलिए श्वास-संवर से श्वास की गति नियंत्रित होने से दीर्घजीवन और स्वास्थ्य-संवर्धन की संभावना तो है ही; मन:संवर, कषाय संवर आदि की साधना भी अनायास ही हो जाती है।'
श्वास कब तीव्र होता है, कब मन्द ? : संक्षेप में निष्कर्ष
श्वास कब तीव्र होता है ? अधिक भय, चिन्ता, क्रोधादि आवेश, एवं कामवासना की प्रबलता, अतिश्रम, आदि मन में आते ही श्वास की गति तेज हो जाती है। अधिक सर्दी और अधिक गर्मी लगने पर या शरीर के ज्वरग्रस्त, तनावग्रस्त, रक्तचापवृद्धि तथा । फनी आदि हो जाने पर भी श्वास की चाल तीव्र हो जाती है। श्वास की गति मन्द होती है-उपवास से, कायोत्सर्ग से, शिथिलासन से, शान्त एवं एकाग्रचित्त से तथा ध्यान करने
से।
इस प्रकार उपवास, अल्पाहार एवं हलका आहार करने पर श्वास स्वतः नियंत्रित हो जाता है, श्वास अपने आप ही संयत एवं शान्त हो जाता है। श्वास-संवर होने से कषाय आदि आवों का भी स्वतः संवर होने लगेगा।
जो व्यक्ति श्वास को अधिकाधिक संयत और शान्त रखने का प्रयत्न करता है, उसके कषाय, प्रमाद, मन-वचन-काययोग आदि अपने आप ही शान्त, संयत और स्थिर हो जाते हैं। अतः श्वास संवर कहें या कषाय संवर, मन:संबर कहें या प्राण संवर, बात एक ही है। श्वास संवर से व्यक्ति स्वस्थ, दीर्घजीवी एवं संयत होने के साथ-साथ मनोभावों से, कषायों से शान्त तथा तनाव से मुक्त होगा। अतः श्वास संवर या श्वासोच्छ्वास-बल-प्राण-संवर का संवर- साधना में बहुत बड़ा महत्त्व और लाभ है।
१.
अखण्ड ज्योति, जून १९७४ से भावांश ग्रहण पृ. २३
२. महावीर की साधना का रहस्य से भावांश ग्रहण पृ. ६८-६९
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