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९७२ कर्म-विज्ञान : भाग र कर्मों का आनव और संवर (६)
आसनविजय, निद्राविजय और आहारविजय
जो व्यक्ति दीर्घकाल तक ध्यान या कायोत्सर्ग करना चाहता है, उसके लिए श्वास-संवर करना अनिवार्य होता है। ध्यानमुद्रा में बैठने के लिए आसन, निद्रा और आहार पर विजय आवश्यक होती है। इसीलिए आचार्य कुन्दकुन्द ने कहा- महावीर की ध्यान-साधना के मूल हैं- "आसन- विजय, निद्राविजय और आहार - विजय।”
आसन पर विजय का मतलब हैं-एक ही आसन पर लगातार ५-१० घंटे बैठ सकना । ऐसा वे ही कर सकते हैं, जिनका प्राणवायु (प्राण) पर, वीर्य पर नियंत्रण है। जो व्यक्ति श्वास (प्राण) पर विजय नहीं पा सके हैं, वे आध घंटे भी एक आसन पर मुश्किल. से बैठ सकते हैं। शरीर चंचल होता है तो मन भी चंचल एवं उद्विग्न होने लगता है, ध्यान में एकाग्रता नहीं आ पाती। अतः श्वास- विजय (श्वास-संवर) आसन-विजय के लिए अनिवार्य है। अतः आसन-विजय होते ही. श्वास- विजय अनायास ही हो जाती है। निद्रा आदि प्रमाद पर विजय एवं आहार पर नियंत्रण के लिए भी श्वास-संवर अथवा ' श्वास-विजय अनिवार्य है।'
भगवान् महावीर ने कायोत्सर्ग पर बहुत जोर दिया है। कायोत्सर्ग करते ही श्वास स्वतः शान्त और संयत होने लगेगा। श्वास-संवर के लिए कायोत्सर्ग भी प्रबल साधन है। कायोत्सर्ग में काया शान्त और स्थिर होगी, काया से प्रवृत्ति अत्यन्त कम हो जाएगी तो श्वासोच्छ्वास स्वतः ही शान्त, स्थिर और संयत होने लगेगा। काया भी शान्त और निश्चेष्ट, वचन भी शान्त और मौन हो जाएगा, मन भी शान्त और स्थिर । योगों की चंचलता कम होते ही संवर सधने लगेगा। मन-वचन-काया से प्रवृत्ति जितनी कम होगी, उतना ही श्वास-संवर संधती जाएगा।
वास्तविक स्वस्थता, प्राणायाम से श्वास-नियंत्रण एवं कायोत्सर्ग : एक ही फलितार्थ सूचक
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, आयुर्वेद में 'स्वस्थ' का लक्षण इस प्रकार दिया है जिसके वात, पित्त और कफ, ये तीनों दोष सम हों, अग्नि सम हो, धातुएँ सम हों, मलक्रिया बराबर हो, आत्मा, इन्द्रियाँ और मन प्रसन्न और शान्त हों, उसे ही 'स्वस्थ' कहा जाता है।"
प्राणायाम से श्वास-संवर होने के कारण श्वास नियंत्रित और शान्त होता है, त्रिदोष भी सम हो जाते हैं, अग्नि सम हो जाती है; मल विसर्जन क्रिया, पाचन क्रिया आदि सब ठीक रहती हैं। आत्मा, मन और इन्द्रियाँ शान्त एवं प्रसन्न रहते हैं।
१. महावीर की साधना का रहस्य से भावांश ग्रहण, पृ. ६९-७० २. 'समदोषः समाग्निश्च समधातु सलक्रिय: आत्मेन्द्रियमन स्वस्थ इत्यभिधीयते ॥"
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