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९२४ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आम्रव और संवर (६) .: . कुछ वर्षों पूर्व डॉक्टर राल्फ एलेक्जेण्डर ने इस प्रकार की इच्छा शक्ति का सार्वजनिक प्रदर्शन मेक्सिको नंगर में किया था, जिसमें सभी प्रकार के बुद्धिजीवियों एवं सम्भ्रान्त नागरिकों ने भाग लिया था। प्रयोग यह था कि आकाश में छाये बादलों को किसी भी स्थान से किसी भी दिशा में हटाया जा सकता है, उनकी मनचाही आकृति बनाई जा. सकती है तथा उन्हें बुलाया और भगाया जा सकता है। प्रदर्शन के प्रारम्भ में आकाश में एक भी बादल नहीं था परन्तु प्रयोगकर्ता ने देखते ही देखते मेघधाराएँ बुला दी, उनकी चित्र-विचित्र आकृतियाँ बना दी, और विभिन्न दिशाओं में उन्हें बिखेर दिया।
. स्वामी विवेकानन्द ने अपने एक भाषण में प्राणऊर्जा सम्पन्न मनोबली के बारे में बताया था कि वह किसी का प्रश्न सुने बिना ही अपने पास रखे हुए कागज में उसे अंकित कर देता है। स्वामी विवेकानन्द मण्डली के साथ उपस्थित व्यक्तियों के पास पहुंचे। उन्हें एक एक कागज देकर, अपने-अपने प्रश्न अपने मन में सोच लेने को कहा। स्वामीजी और उनके सभी साथियों ने अपने-अपने प्रश्न मन में सोच लिये। फिर उन्हें अपने-अपने कागज खोलकर देखने को कहा गया। ... स्वामीजी कहते हैं-मेरी सोची हुई संस्कृत भाषा की पंक्तियाँ ज्यों की त्यों उस कागज पर लिखी मिलीं। मेरे एक साथी ने अरबी भाषा की एक कविता सोची थी, वह भी ठीक उसी तरह लिखी मिली। तीसरे साथी ने जर्मन की किसी डॉक्टरी पुस्तक का वाक्य अपने मन में सोचा था, वह भी उनके कागज पर ज्यों का त्यों लिखा मिला।'
वस्तुतः ये सब प्राणऊर्जा सम्पन्न मनोबल के विकास के चमत्कार हैं। एक व्यक्ति के विचार दूरवर्ती व्यक्ति को पहुँचाए जा सकते हैं, उसे प्रभावित भी किया जा सकता है, इसी मनोबलप्राण के विकास से। ..
. प्राण शक्ति युक्त मनोबल कैसे प्राप्त होता है?
किसी-किसी व्यक्ति को यह शक्ति पूर्वजन्म में उपार्जित कर्म विशेष के क्षयोपशम से प्राप्त हो जाती है, और एक सीमा तक बढ़कर लुप्त हो जाती है, क्योंकि उसने मन के साथ.प्राप्त प्राण शक्ति का सदुपयोग नहीं किया, उलटे लोगों को सताने, मारने, लूटने, ठगने आदि में किया। . ...
........ , मन की प्राणऊर्जा का हास और विकास कैसे होता है?
अतः मन की प्राणऊर्जा को अनावश्यक रूप से व्यय करने, असाध्य महत्त्वाकांक्षाओं से, मन से आतरौद्रध्यान करके इस शक्ति का अपव्यय करने से यह
मनःशक्ति घटती है। उसका हास उत्थान का नहीं, पतन का कारण बनता है। जिन लोगों ' को यह प्राणऊर्जा सम्पन्न मनोबल प्राप्त होता है, उनकी इच्छाशक्ति पूर्वोक्त अपव्यय को.
१. वही, नवम्बर १९७३ से भावांश ग्रहण, पृ. १३
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