________________
९५६ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आस्रव और संवर (६) नहीं। इन्हें विशेष विश्लेषण से ही जाना जा सकता है, और विशेष उपायों से ही निकाला जा सकता है।
इसी प्रकार हवा के भीतर भी बहुत कुछ भरा पड़ा है। श्वास लेते समय ऑक्सीजन, नाइट्रोजन आदि का रासायनिक मिश्रण शरीर के भीतर प्रविष्ट हो जाता है। उसमें से जो आवश्यक है, उसे शरीर सोख लेता है, और भीतर से उत्पन्न कचरे को वापस लौटने वाली सांस में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस के रूप में बहा (बाहर निकाल) देता है।
. अतः पृथ्वी पर ठोस, पानी में प्रवाही (तरल) और हवा में गैस के रूप में बहुत-से पदार्थ मौजूद हैं। श्वास खींचते समय उसके साथ पूर्वोक्त वायु आती है, उसके साथ ही पृथ्वी, जल और प्राणतत्त्व आदि भी सामान्यरूप से आते हैं, विशेषरूप से आकर्षित (आहृत) किये जाते हैं, प्राणायाम के द्वारा। अतः प्राणायाम का महत्व और उपयोग तथा उद्देश्य और लाभ समझ लेना आवश्यक है।' स्वास्थ्यसंवर्द्धक प्राणायाम का स्वरूप और उसकी सफलता ... ... आमतौर पर नासिका से श्वास खींचने, छोड़ने और रोकने की विधि-विशेष को प्राणायाम कहते हैं। इसमें श्वास खींचने को पूरक, रोकने को कुम्भक और छोड़ने को रेचक कहा जाता है। इस प्राणायाम के अनेकों भेद-प्रभेद हैं। उनमें पूरक, कुम्भक, रेचक के अलावा अन्तःकुम्भक, बाह्यकुम्भक, शीतली, सीत्कारी, भस्त्रिका, उज्जायी, लोमविलोम, मूलबन्ध, उड्डियानबन्ध, सूर्यभेदी, नाड़ीशोधन आदि प्राणायाम मुख्य हैं। .., इनके भिन्न-भिन्न विधान, विभिन्न पद्धतियों, प्रयोजन तथा परिणाम हैं। इन सभी में यदि एक बात सामान्यरूप से रहे कि श्वास लेते समय संकल्पपूर्वक यह विश्वास विकसित किया जाता है कि नाक के साथ अन्दर प्रविष्ट होने वाली वायु में प्रचुर-परिमाण में प्राणतत्त्व भरा हुआ है। प्राणायाम क्रिया करते समय उद्दीप्त हुई संकल्पशक्ति के सहारे वह भीतर खिंचता चला आ रहा है और उसकी प्रतिष्ठापना शरीर के अंग-अंग में, रोम-रोम में होती चली जा रही है। ऐसी अभिव्यक्ति और सावधानी जितनी प्रखर होगी, उसी अनुपात में उभरा हुआ संकल्प ब्रह्माण्डव्याप्त प्राणतत्त्व को अधिकाधिक मात्रा में खींचने और धारण करने में सफल हो सकेगा।'
आशय यह है कि श्वास का आहरण करते (खींचते) समय लोकव्यापी छहों दिशाओं के प्राण-तत्त्वोत्पादक पुद्गलों का प्रचुरपरिमाण में खींचना, रोकते समय उनका रोम-रोम में बस जाना तथा छोड़ते समय अन्तर् की विकृतियों को अपने साथ घसीटते
१. अखण्ड ज्योति जून १९७७ से भावांश ग्रहण, पृ. २५ २. वही, सितम्बर १९७७ से भावांश ग्रहण, पृ. ३१
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org