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प्राणबल और श्वासोच्छ्वास-बलप्राण-संवर की साधना ९६३
अभ्यस्त करना होता है। अन्तरंग प्राप्य बल के बिना सम्पर्क क्षेत्र की बिखरी पड़ी अवांछनीयताओं से जूझने की वीरता तथा व्यक्तित्व को आन्तरिक ऊर्जा सम्पन्न उच्चस्तरीय सिद्ध करने वाली सज्जनता कथमपि सम्भव नहीं हो सकती। सरकस के खेल दिखाने के लिए प्रशिक्षित करके हिंन एवं क्रूर जानवरों को साधने के समान यह कार्य भी अत्यन्त कठिन है, किन्तु असम्भव नहीं है। श्वासोच्छ्वास-प्राणबल संवर-साधनात्मक प्राणविद्या के आधार पर जो चेतनात्मक प्राणऊर्जा उपार्जित की जाती है, उसमें ऐसी ही साहसिकता, वीरता और सक्रियता का सुखद समन्वय है।'' आध्यात्मिक प्राणायाम से श्वासोच्छ्वास बल-प्राण संवर में तीव्रता
अध्यात्म-साधना में प्राणायाम को योगाभ्यास का महत्वपूर्ण अंग माना गया है। उससे मात्र मनोनिग्रह का. लाभ ही नहीं मिलता, अन्य सूक्ष्म संस्थानों का भी परिशोधन होता है। शारीरिक आरोग्य का लाभ तो सर्वविदित है। फेफड़े सुदृढ़ होने तथा अधिक मात्रा में शरीर में प्राणवाय के प्रवेश होने से जीवन तत्त्व भी अधिक मिलते हैं; आत्मिक परिशोधन की गति भी तीव्र होती है। फलतः आत्मिक पवित्रता बढ़ती है। कुसंस्कारों और दोष-दर्गणों का निराकरण होता है। अन्तःकरण में श्रेष्ठ संस्कार जागृत होने लगते हैं। इससे हिंसादि आनवों का निरोध करने एवं अहिंसादि संवर का पालन करने में व्यक्ति सक्षम हो जाता है। - प्राणायाम का स्थूल (औदारिक) और सूक्ष्म (तेजस) शरीरों पर प्रत्यक्ष प्रभाव होता है- स्वास्थ्य-संवर्द्धन और मानसिक एवं बौद्धिक परिष्कार के रूप में। कार्मण (कारण) शरीर के भाव-संस्थान पर भी इस साधना की उपयुक्त प्रतिक्रिया होती है।
प्राणायाम से व्यक्ति के शरीरबल, मनोबल तथा आत्मबल में संवर्द्धन होने पर बाह्याभ्यन्तर तपश्चर्या तथा परीषहजय आदि कर्मनिर्जरा एवं कर्मसंवर की क्षमता बढ़ जाती है।
. .मनुस्मृति में भी कहा है-"जैसे अग्नि में डालने से धातुओं के मल जल जाते हैं, वैसे ही प्राणनिग्रह रूप प्राणायाम करने से इन्द्रियों के विकार दूर हो जाते हैं।" अमृतनादोपनिषद् में उल्लेख है कि “जिस प्रकार सोने को तपाने से उसके खोट जल जाते हैं, वैसे ही प्राणधारणरूप प्राणायाम से इन्द्रियों के विकार जलकर नष्ट हो जाते हैं।" 'योगसन्ध्या' में कहा है-"प्राणायाम जैसे पापरूपी ईंधन को जलाने वाला पावक' (अग्नि) है, वैसे ही योगियों ने इसे संसाररूपी समुद्र को पार करने वाला महासेतु (बड़ा पुल) भी कहा है।" पंचशिखाचार्य ने प्राणायाम का महत्व बताते हुए कहा है-“प्राणायाम
१. अखण्ड ज्योति, मार्च १९७७ से भावांश ग्रहण, पृ. ४५ २. अखण्ड ज्योति अप्रेल १९७७ में भावांश ग्रहण, पृ. ४६
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