Book Title: Karm Vignan Part 03
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 424
________________ ९४० कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आनव और संवर (६) प्राणशक्ति के विविध चमत्कार मनुष्य में जो भी चमक, स्फूर्ति, उत्साह, चेतना, तन्मयता आदि तत्परता दिखाई देती है, वह उसमें विद्यमान प्राणशक्ति का चमत्कार है। जिसमें प्राणतत्त्व जितना कम होगा, वह उतना ही निस्तेज, निष्प्राण, निर्बल, निरुत्साह, स्फूर्तिरहित होगा । ओजस्वी, तेजस्वी, मनस्वी एवं तपस्वी व्यक्तियों की प्रखरता का कारण उनमें विद्यमान प्राणबल है। उत्साह, साहस और सन्तुलन की उपलब्धियाँ भी प्राणतत्त्व की मात्रा पर आधारित हैं। वैसे तो पराक्रमी मानवों और सामान्य मानवों की शरीर रचना, तथा मस्तिष्कीय गठन में कोई खास अन्तर नहीं होता; अध्यात्म साधना में पराक्रमी लोगों में विशेषताप्राणऊर्जा की सम्पन्नता है। संकल्पशक्ति तथा इच्छाशक्ति में दृढ़ता और सुनिश्चितता इसी प्राणशक्ति का वरदान है। यही व्यक्तित्व को प्रखर बनाती है। इसी के आधार पर आध्यात्मिक प्रगति के साधनों को जुटाना और अवरोधों, विघ्न-बाधाओं को हटाना. आसान हो जाता है। आँखों में चमक, चेहरे पर दमक, वाणी में प्रभावशीलता, व्यवहार में विचक्षणता का परिचय प्राणशक्ति ही देती है। प्रभावशाली व्यक्तित्व की पहचान प्राणतत्त्व के बाहुल्य से होती है। देहधारियों की गरिमा का मूल्यांकन इसी की न्यूनाधिक मात्रा के आधार पर किया जाता है। जो इस प्राणविद्या का रहस्य प्राणबल-संवर साधना के माध्यम से जान लेता है, उसके लिए संसार में ऐसा कुछ भी अलभ्य नहीं रहता, जो प्रगति, समृद्धि और सुख-शान्ति के लिए आवश्यक हो । ' प्राणबल -संवर के पथिक की पहचान प्राणवान् व्यक्ति लोक प्रवाह के विपरीत अपनी संवर- निर्जरारूप या रत्नत्रयरूप साधनापथ पर अपनी राह एकाकी बना लेता है। इसी प्राणशक्ति के सहारे वह प्राणबल संवर पथ का पथिक दृढ़ आत्मविश्वास के साथ अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एकाकी बढ़ा चला जाता है। अपनी कर्ममुक्तिगामी योजनाओं को क्रियान्वित करने का शौर्य भी इसी प्राणबल के सहारे दिखा सकता है। प्राणवान साधकों के जीवन में महाशक्ति का अवतरण भगवान् महावीर, भगवान् पार्श्वनाथ, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, आदि ऐतिहासिक महामानवों में इसी प्राणतत्त्व की समुचित मात्रा रही है। इसी के सहारे उन्होंने महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये और साहसपूर्ण कदम उठाये। और तो और भगवान् महावीर के अनुगामी प्राणवान् साधक जब कर्ममुक्ति के संवर- निर्जरा-रूप पथ पर चलने को उद्यत हुए तब उनके द्वारा स्वेच्छा से उस मोक्षपथ - परमात्मप्राप्ति पथ पर चलने का निश्चय प्रकट किया तो उनके कुटुम्बियों, सम्बन्धियों एवं तथाकथित हितैषियों ने एकजुट होकर १. अखण्डज्योति, मार्च १९७७ से भावांश ग्रहण पृ. ४३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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