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प्राणबल और श्वासोच्छ्वास- बलप्राण-संवर की साधना ९५१
श्वास-उच्छ्वास भी प्राण का आवश्यक अंग
आम धारणा के अनुसार श्वासोच्छ्वास को अथवा श्वास को प्राण कहा जाता है। सांस के साथ चलने वाली 'वायु' 'प्राण' नाम से प्रचलित है। यद्यपि वायु और प्राण का वैसा ही सम्बन्ध है, जैसा शब्द और वायु का । जहाँ वायु नहीं होगी, वहाँ दो व्यक्ति अत्यन्त पास में खड़े हों तो भी परस्पर वार्तालाप नहीं होगा। हवा नहीं होगी, वहाँ होठ, जीभ आदि सब कुछ बोलने और संचलित होने का प्रयत्न करेंगे, परन्तु मुँह से शब्द नहीं निकलेंगे, क्योंकि बिना हवा के किसी भी ध्वनि का दूसरे तक पहुँच सकना सम्भव नहीं होता। इसी प्रकार जहाँ श्वास और उच्छ्वास के रूप में वायु होगी, वहाँ अगर प्राणतत्त्व नहीं जुड़ा हुआ है, तो व्यक्ति का जीवन धारण करना कठिन हो जाएगा । उस शरीर में हाथ, पैर, मुँह आदि सब अवयव एवं श्वास के होने पर भी वे ठप्प हो जाएँगे, चल नहीं सकेंगे। इसलिए प्राण को ऑक्सीजन (प्राणवायु कहा जाता है)। वैशेषिक दर्शन ने शरीर के अंदर संचारित होने वाले प्राण को वायु कहा है। "
जीवन को स्थिर रखने वाला प्राण: श्वासोच्छ्वास बल- प्राण: क्यों और कैसे?
मतलब यह है कि केवल श्वास को प्राण नहीं कहा जा सकता । श्वासोच्छ्वासरूप वायु के साथ प्राण का घुल-मिल जाना या श्वास के सहारे से प्राणतत्त्व को आकर्षित कर सकना एक बात है, और मात्र श्वास-प्रश्वास क्रिया करना सर्वथा दूसरी । वस्तुतः श्वासोच्छ्वास के साथ प्राण घुल-मिल जाता है, या श्वास के द्वारा प्राण का आकर्षणविकर्षण किया जाता है, तभी श्वास का संचार सारे शरीर में ठीक ढंग से, व्यवस्थित रूप से होता है।
प्राण के इस नौवें विशिष्ट संस्थान को जैनागमों की भाषा में श्वासोच्छ्वास-बल-प्राण कहा गया है। इसका रहस्य यह है कि श्वास या उच्छ्वास के साथ जब तक प्राण नहीं जुड़ता है, अथवा जब प्राण का सम्बन्ध उससे टूट जाता है, जब श्वास का चलना, अंदर खींचना या बाहर निकालना, नहीं हो पाता । श्वास की गति (गमनागमन) जब बंद हो जाती है, तब मृत्यु सामने आ खड़ी होती है और जीवन का शीघ्र ही पटाक्षेप हो जाता है। अतः श्वासोच्छ्वास में शक्ति, गति, क्रियाशीलता आदि प्रदान करने वाला प्राण श्वासोच्छ्वास बल- प्राण है।
9 (क) वही, सितम्बर १९७७ से, पृ. २९
(ख) शरीरान्तः संचारी वायुः प्राणः, स चैकोऽप्युपाधिभेदात् प्राणापानादि संज्ञां लभते ।
- वैशेषिक दर्शन
वही, सितम्बर १९७७ से, पृ. ३१
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