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९४४ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आस्रव और संवर (६)
के धारक मानव की ऋद्धि-सिद्धियों, लब्धियों आदि का जो वर्णन मिलता है, वह विकसित प्राणशक्ति की सम्पदाओं का सूचक है। इसी प्राणशक्ति के सहारे अतीन्द्रिय क्षमताएँ उभरती हैं और ब्रह्माण्डीय चेतना के साथ सम्पर्क करना, सूक्ष्म की गतिविधियों को समझना, तथा अपने पक्ष में उनको झुकाना सम्भव होता है।" शारीरिक और मानसिक क्षेत्र में प्राणशक्ति का प्रभाव
शरीर में स्थित यह प्राणिज विद्युत् रूपी प्राणशक्ति आकर्षक व्यक्तित्व के रूप में देखी जा सकती है। मनःक्षेत्र में उसका उभार साहस, विवेक, सन्तुलन, मुस्कान आदि गुणों के रूप में दृष्टिगोचर होता है। जब वह जैविक प्राणशक्ति मनोबल, ओज और शौर्य के रूप में विकसित होती है, तब समीपवर्ती लोगों पर गहरा प्रभाव डाल देती है। लोग उसका अनुमगन करने और आदेश मानने को बाध्य होते हैं। प्राणशक्ति की अभिवृद्धि से प्राणबल संवर साधना : कैसे और क्यों?
शरीर, मन और अन्तःकरण में काम करनेवाली विद्युत रूपी प्राण शक्ति की अभिवृद्धि और अध्यात्म विकास में उसका सदुपयोग करना प्राणबल-संवर की साधना का प्रथम सोपान है। विविध बाह्य एवं आभ्यन्तर तपश्चरण इसी प्राणबल संवर की साधना के उद्देश्य से किये जाते हैं। मौन, एकान्त, विविक्त स्थान-सेवन तथा ब्रह्मचर्य आदि साधनाएँ भी इसी उद्देश्य से विहित हैं कि वह जैविक प्राणभण्डार निरर्थक कार्यों में खर्च न होकर सुरक्षित रखा जा सके और अधिक महत्त्वपूर्ण संवर-निर्जरा रूप अध्यात्म कार्यों में खर्च किया जा सके। ____ महान् आत्माओं का सान्निध्य, सम्पर्क या उपासना एवं सत्संग अपने आप में बहुत बड़ा लाभ है। भगवती सूत्र में उपासना के क्रम में श्रवण से लेकर निर्वाण तक उत्तरोत्तर आध्यात्मिक लाभ बताया गया है। प्राणवान् व्यक्तियों के सान्निध्य में रहकर भी उनके विद्युत् प्रवाह (प्राणबल) से उसी प्रकार लाभान्वित हुआ जा सकता है, जिस प्रकार चन्दन वृक्ष के समीप उगे हुए झाड़-झंखाड़ भी सुगन्धि युक्त होकर लाभान्वित होते हैं। यह स्पष्ट है कि आग और बिजली के सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों में यदि ग्रहण करने की विवेकयुक्त शक्ति हो तो वे भी उसी तरह की बन जाती हैं। चुम्बक शक्ति से अल्पप्राण व्यक्ति भी प्राणऊर्जा सम्पन्न
अभ्यास करने पर वही सामान्य अल्पप्राण सचेतन चुम्बक के रूप में विकसित हो सकता है। इसी व्यक्तित्व को प्राणवान् तथा बैतन्य-प्राण ऊर्जा सम्पन्न कहते हैं। प्राणबल-संवर-साधना का उद्देश्य भी इसी चुम्बकत्व शक्ति, ब्रह्मवर्चस् या प्राणऊर्जा का
१. अखण्ड ज्योति फरवरी १९७७ से यत्किंचिद् भावांश ग्रहण पृ. ४२ २. वही, नवम्बर १९७३ से भावांश ग्रहण पृ. ५१
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