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९३६ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आनव और संवर (६)
वाली शक्ति (Power) के समान है। भौतिक बिजली में धक्का मारने,आगे बढ़ाने और फैलाने की क्षमता है। उसकी गणना अश्वशक्ति (HorsePower) के रूप में की जाती है। किन्तु प्राणिजन्य विद्युत की क्रियापद्धति इससे भिन्न है। इसमें व्यक्तित्व के सर्वतोमुखी विकास की सिद्धि प्राण संवर की साधना से उपलब्ध की जाने की क्षमता है। इतना ही नहीं, वह प्राणिज विद्यत अन्य प्राणियों और पदार्थों को भी प्रभावित कर सकती है और वातावरण पर अपना असाधारण प्रभाव डाल सकती है।' प्राणिज प्राण की महत्ता एवं विशेषता - इसीलिए भारतीय अध्यात्मवेत्ताओं ने इसका निरूपण प्राण के रूप में किया है। उपनिषदों में प्राण तत्त्व की गरिमा का भावपूर्ण उल्लेख है। उसे 'ब्रह्मतुल्य' माना गया है,
और सर्वोपरि ‘ब्राह्मीशक्ति' का नाम दिया गया है। वस्तुतः प्राण प्राणियों की (चेतन की) जीवनी शक्ति है, जिजीविषा से लेकर समाधिमरण की शक्ति तक उसके असंख्य रूप हैं। यह मानव को विचारशक्ति ही नहीं, क्रियाशक्ति की दिशा एवं उत्तेजना भी देती है। ___ आध्यात्मिक विकास की केवल आकांक्षा से काम नहीं चलता, उसे पूरा करने की साहसिकता एवं सामर्थ्य भी चाहिए, उसे प्राणशक्ति देती है। प्राणबल में आकांक्षा के साथ निष्कर्ष, निश्चय, योजना, और अग्रगमन के योग्य साहसिकता जुटी रहती है। जीवन का वास्तविक बल प्राणशक्ति है, इसी के सहारे कर्मों के आसव और संवर के तथा पतन
और उत्थान के एवं विनाश और विकास के आधार बनते हैं। प्राणबल का ही जीवन के सभी क्षेत्रों में चमत्कार
निष्कर्ष यह है कि प्राण एक सचेतन विद्युत ऊर्जा है, जिसकी दिशा संवर की ओर होने से तथा उसकी मात्रा बढ़ी-चढ़ी होने पर व्यक्ति के जीवन के बहिरंग और अन्तरंग दोनों पक्षों में उसका चामत्कारिक प्रभाव देखा जा सकता है। यह प्राण शक्ति ही अध्यात्म-मुखी (संवर-निर्जरामुखी) होने पर व्यक्ति के जीवन में उत्साह और साहस के रूप में चमकती है, दृढ़ता और तत्परता के रूप में भी उसे देखा जा सकता है। संकल्प शक्ति या दृढ़ इच्छाशक्ति के रूप में भी उसकी पहचान होती है। ____ अपने दृढ़ निश्चय के मार्ग पर स्वीकृत संवर निर्जरारूप धर्मपथ पर चलने में अनेकानेक कठिनाइयों, विघ्न-बाधाओं तथा संकटों एवं अवरोधों, परीषहों और उपसर्गों से समभाव पूर्वक जूझने की शक्ति वही प्राणशक्ति है। जिससे प्राणबल संवर का उच्चसाधक प्रतिकूलताओं के बीच भी अनुकूलता उत्पन्न करने का साहस जुटाता है। अपनी श्रमसाध्य और समय साध्य मंजिल को उत्साह और श्रद्धा के साथ वह पार कर
१. अखण्ड ज्योति, मार्च १९७७ से भावांश ग्रहण, पृ. ४०
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