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प्राण- संवर का स्वरूप और उसकी साधना ९०९
क्रियाशीलता, विद्युत् ऊर्जा-शक्ति, तेजस्विता तथा सक्रियता ला देता है, उसे काय-बल प्राण कहा जा सकता है। -
जो प्राण श्वास लेने और छोड़ने में सहयोग करता है, तथा विशेषतः प्राणायाम आदि श्वास-सम्बन्धी योग-साधना में सहायक बनता है, उसे श्वासोच्छ्वास- बल-प्राण कहा जा सकता है।
इसी प्रकार जो प्राण आयुष्य को टिकाने, तथा आयुष्य बल की वृद्धि करने में सहयोगी बनता है, उसे हम आयुष्य-बल-प्राण कह सकते हैं। "
इस प्रकार क्षेत्र - विशेष एवं कार्य विशेष को लेकर एक ही प्राण के १० विभाग हो गए हैं।
संसारी प्राणियों में दस प्राणों में से किसमें कितने प्राण ?
संसारस्थ सभी प्राणियों को इन्द्रियों की अपेक्षा से पांच भागों में वर्गीकृत करके आगमकारों ने इन दस प्राणों में से किसमें कितने प्राण पाए जाते हैं, इसका भी दिग्दर्शन कराया है। सामान्यतया एकेन्द्रिय जीवों में ४ प्राण पाए जाते हैं- स्पर्शेन्द्रिय बल प्राण, कायबल प्राण, श्वासोच्छवास बल- प्राण और आयुष्य बल प्राण । द्वीन्द्रिय जीवों में ६ प्राण पाये जाते हैं-पूर्वोक्त चार और रसनेन्द्रियबल प्राण तथा वचन बल प्राण । त्रीन्द्रिय जीवों में-७ प्राण पाये जाते हैं-पूर्वोक्त ६ प्राण तथा घ्राणेन्द्रिय बल प्राण । चतुरिन्द्रिय जीवों में ८ प्राण पाये जाते हैं-पूर्वोक्त ७ प्राण तथा चक्षु-इन्द्रियबल प्राण। असंज्ञी (अमनस्क) पंचेन्द्रिय जीवों में श्रोत्रेन्द्रिय सहित ९ प्राण पाए जाते हैं, सिर्फ एक मनोबल-प्राण को छोड़कर। संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों (नारक, तिर्यच, मनुष्य और देवों) में दस ही प्राण पाये जाते हैं।
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जिन प्राणियों में पूर्वकृत कर्मवश पूर्वोक्त दस प्राणों से कम (अल्प) प्राण पाये जाते हैं, उन्हें स्थानांगसूत्र में क्षुद्र प्राण कहा गया है। वे क्षुद्रप्राण प्राणी छह प्रकार के हैंद्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, सम्मूर्च्छिम- पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक, तेजस्कायिक एवं वायुकायिक जीव
प्राण जीवन में अनिवार्य होते हुए भी प्राण निरोध या प्राण संवर क्यों?
इस प्रकार प्राणों की शक्तिमत्ता, सक्रियता और सवीर्यता का निरूपण करने के पश्चात् प्रश्न होता है- प्राणों की प्रत्येक प्राणी के, विशेषतः मनुष्य के जीवन में
१. महावीर की साधना का रहस्य से भावांश ग्रहण, पृ. ५७
२. पच्चीस बोल का थोकड़ा विवेचन युक्त (पं. विजयमुनि शास्त्री) से
३. छव्विहा खुड्डा पाणा पण्णत्ता तं जहा - बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया, समुच्छिम पचिंदिय तिरिक्खजोणिया, तेउकाइया, वाउकाइया ।
-स्थानांग स्थान ६.
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