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८५८ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आनव और संवर (६)
स्वरूप को पहचानें । सुख की प्रेरणा को विषयासक्ति की ओर मोड़ने के बजाय आत्मोत्थान की ओर मोड़ दें। '
जैन दृष्टि से मनः संवर-साधना की दो कक्षाएँ
आवश्यकसूत्र एवं उपासकदशांगसूत्र में संयम साधना या संवर साधना की दो कक्षाएँ बताई गई हैं-देश-संयम और सर्वसंयम ।
जो व्यक्ति पूर्णरूप से तीन करण-तीन योग से अहिंसादि संवर का पालन करने में असमर्थ हैं, उनके लिए (पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत के रूप में) देशसंयम (देशसंवर) का विधान है। उनके लिए परिग्रह का तथा उपभोग्य - परिभोग्य वस्तुओं का मर्यादित एवं व्रतबद्ध होकर सेवन करने का विधान किया है। अर्थात् उनके लिए मर्यादित इन्द्रिय-सुखों, शारीरिक-मानसिक सुखों का विधान है।
धनोपार्जन, व्यवसायकरण, या अमुक मनोरंजन के साधनों का उपभोग, अथवा खाद्य-पेय वस्तुओं तथा शरीर के लिए आवश्यक साधनों के उपयोग आदि सुखोपभोग सामग्री का सर्वथा निषेध उनके लिए नहीं किया।
किन्तु उन सामग्रियों के उपभोग में जहाँ त्रस प्राणियों का जानबूझकर वध किया जाना सम्भव है, स्थावर एकेन्द्रिय जीवों का भी अतिमात्रा में वध होता हो, जिन वस्तुओं के सेवन से अनैतिकता, स्वच्छन्दता, अनाचारिता (आचारमर्यादा भंग) होती हो, जिन वस्तुओं के सेवन से जीवन में मद, प्रमाद, अजागृति, तथा बुद्धिभ्रष्टता उत्पन्न होती हो, जिससे दूसरे मनुष्यों के जीवन और जीविका को हानि पहुँचती हो, ऐसी वस्तुओं का तथा ऐसे अशुभ कर्मों का अत्यधिक आम्लव (कर्मागमन-कर्मादान) होता हो, ऐसे व्यवसायों का, सप्त कुव्यसनों का सर्वथा निषेध किया है। व्रतों में भी जहाँ दोष (अतिचार) की सम्भावना है, वहाँ सावधान किया है।
विषयसुखों को आत्मिक सुखों में लगाने हेतु : गृहस्थ श्रावक के लिए चार शिक्षाव्रत
साथ ही उच्छृंखल मन और इन्द्रियों का निग्रह करने तथा उनको अपनी इच्छानुसार भगवद्भजन में, स्वाध्याय, ध्यान, प्रभु-प्रार्थना, स्तुति, भक्तिगीत आदि में लगाने का अभ्यास करने के लिए चार शिक्षाव्रतों (सामायिक, देशावकाशिक, प्रतिपूर्ण पौषध व्रत तथा यथासंविभागव्रत) का भी विधान किया है। जिससे ऐसे देशतः मनः संवर
१.
मन और उसका निग्रह (स्वामी बुधानन्द) से भावांश ग्रहण, पृ. १४
२. (क) देखें - आवश्यकसूत्र, उपासकदशांग आदि आगमों में श्रमणों और श्रमणोपासकों के व्रत, नियम आदि का निधान
(ख) देखें - श्रावकधर्म-दर्शन (प्रवक्ता - उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी) में बारह व्रतों की व्याख्या ।
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