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८७२ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आस्रव और संवर (६)
पर इच्छानुसार अनुशासन कर सकोगे। योगी की प्रथम स्थिति है-इन्द्रियों से परे हो जाना, और सर्वोच्च स्थिति है-मन पर विजय प्राप्त कर लेना।'' मनोविजय के लिए किये हुए इस अभ्यास से लाभ ___ "ऐसा अभ्यास प्रारम्भ करते ही एक बार तो कितने ही प्रकार के भयंकर, . घिनौने विचार मन में उठेंगे। मन की चंचलता बढ़ती सी मालूम होगी। किन्तु स्वयं से मन को अलग रखने का जितना अधिक अभ्यास किया जाएगा, उतना ही शीघ्र मनोविजय कर सकेंगे। फिर मन के वे मनोहर खेल भी उतने ही कम होते जाएँगे। धीरे-धीरे मन की चपलता साधक की अध्यवसायशीलता एवं सजगता के फलस्वरूप शक्तिहीन होती जाएगी। और अन्त में मन सर्कस के घोड़े के समान सध जाएगा। वह अनुशासित रहता हुआ शक्तिशाली बना रहेगा।
कुछ समय तक प्रतिदिन समय निश्चित करके नियमित रूप से यह अभ्यास करना चाहिए, ताकि मन उचित कार्य करना सीख जाए। प्राणायाम का अभ्यास : मनःस्थिरता में सहायक
(८) प्राणायाम का अभ्यास-जब जल्दी-जल्दी सांस लेते हैं, या अनियमित रूप से श्वास-प्रश्वास चलने लगता है, तब मन विक्षिप्त अवस्था में होता है। मन को शान्त करने का एक उपाय है-श्वास-प्रश्वास को संयत-संवृत करना। गहरे श्वास-प्रश्वास का अभ्यास भी मनःस्थिरता में सहायक होता है।'' मन को बाह्य विषयों से हटाकर लक्ष्य में स्थिर करने हेतु प्रत्याहार का अभ्यास
(९) प्रत्याहार का अभ्यास-बहुधा सामान्य व्यक्ति का मन बार-बार मनमाने विषयों में केन्द्रित करने को विवश हो जाता है। बाह्य विषयों में खिंचकर मन बरबस उनमें लग जाता है। इस प्रकार मनुष्य प्रलोभितकारी विषयों के दास बन जाते हैं। बाहरी चीजें उनके मन पर बलात् आक्रमण करती हैं। अतः ऐसा न हो और बाह्य विषयों में भटकता हुआ मन वश में हो जाए, इसका एक उपाय है-प्रत्याहार।
वस्तुतः इन्द्रियों और इन्द्रियविषयों को जोड़ने वाली बीच की कड़ी मन है। जब मन को इन्द्रियविषयों से हटा लिया जाता है, तो इन्द्रियाँ भी अपने विषयों से हट जाती हैं। वे भी मन का अनुवर्तन (नकल) करती है। इसे ही प्रत्याहार कहते हैं।
जैसे-रानी मधुमक्खी को उड़ाते ही अन्य सब मधुमक्खियाँ उड़ जाती हैं और १. (क) वही, पृ.७१
(ख) विवेकानन्द साहित्य खण्ड ४, पृ. ९०-९१/ २. मन और उसका निग्रह पृ.७२ ३. मन और उसका निग्रह (स्वामी बुधानन्द) से भावांश ग्रहण, पृ. ७४
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