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प्राण-संवर का स्वरूप और उसकी साधना १०३ . जब हृदय धोंकनी की तरह शीघ्र गति से सांस लेने छोड़ने और हाँफने लग जाला है, तब डॉक्टर उच्च रक्तचाप (हाईब्लडप्रेशर) घोषित कर देता है और हृदय में जब श्वास की गति अत्यन्त मन्द पड़ जाती है, तब डॉक्टर उस व्यक्ति के शरीर में लो ब्लड प्रेशर (नीचा रक्तचाप) घोषित करता है। हृदयः प्राण की गति को मापने का एक थर्मामीटर है। वह प्राण के सहारे सारे शरीर में विविध नलिकाओं, नाड़ियों द्वारा रक्त को प्रवाहित एवं वितरित (Supply) करता है। शरीर में प्राण के प्रकट होने का द्वितीय केन्द्र : अपान
. प्राण के प्रकट होने का दूसरा केन्द्र अपान नामक प्राण:(वायु) है। इसका अर्थ आयुर्वेद शास्त्र में इस प्रकार दिया गया है-जो शरीर में संचित मलों को प्रकर्षरूप से बाहर निकालता है, बाहर फेंकता है, ऐसा शक्ति सम्पन्न प्राण अपान है। अपान विशेषतः गुदाद्वार से मल को बाहर निकालता है। मल, मूत्र, स्वेद (प्रसीला) कफ लीट(जाक का मैल), रज, वीर्य आदि का विसर्जन तथा भ्रूण के प्रसव आदि को बाहर फेंकने की समस्त क्रियाएं इसी अपान प्राण के द्वारा होती है। यह भी प्राण को शरीर में संतुलित रखता है। मल, मूत्र आदि शरीर में अवरुद्ध हो जाने अथवा खाया हुआ भोजन नहीं पचने से पेट में सड़ता है, इससे फिर अपच, अजीर्ण, कोष्ठबद्धता, गैस आदि, तथा डकार, हिचकी आदि अनेक व्याधियाँ फैलती हैं। अपान वायु दूषित हो जाने से शरीर में प्राणों का संतुलन बिगड़ जाता है। प्राण के प्रकट होने का तृतीय केन्द्र : समान प्राण ... . समान प्राण नाभिमण्डल में स्थित होकर कार्य करता है। समान का अर्थ है-जो पाचन-रसों का सम्यक् प्रकार से यथास्थान वितरण करता है। पाचक्रं रसों का उत्पादन
और उनके स्तर को उपयुक्त बनाए रखना इसी प्राण का काम है। इस प्राण का दूसरा कार्य यह भी है कि यह नाभिमण्डल में स्थित होकर प्राणायाम द्वारा प्राण का व्यर्थ व्यय होने से रोकने का, तथा ऊपर ब्रह्मरन्ध्र तक पहुँचाने का कार्य भी करता है। प्राण का चतुर्थ केन्द्र :उदान प्राण
उदान प्राण का अर्थ आयुर्वेदवेत्ताओं ने किया है जो शरीर को उठाये रहे, कड़क . रखे, नीचे गिरने न दे, वह उदान है। ऊर्ध्वगमन की अनेकों प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष क्रियाएँ • इसी के द्वारा सम्भव होती हैं। अमरकोष के अनुसार यह प्राण कण्ठप्रदेश में अवस्थित होने से शरीर में वाणी संचार का, कण्ठ से संगीत ध्वनि करने, आवाज निकालने तथा मुख से व्यक्त-अव्यक्त शब्दोच्चारण करने का कार्य करता है। उदान प्राप्प जिल्ला, मुख, कण्ठ और होठ में स्वर संचार की शक्ति प्रदान करता है। योगदर्शन में कहा गया हैसमान पर विजय होने पर शरीर की सक्रियता एवं ऊर्जा ज्वलन्त रहती है।
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