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वचन-संवर की महावीथी ७६७
पृथक्-पृथक् नहीं होती। सम्भव है इसका सार यह है कि उनका मन इतना शक्तिशाली है कि उन्हें भाषा के आलम्बन की भी आवश्यकता नहीं। वे अपनी बात मन के द्वारा भी प्रकट कर सकते हैं।
भगवती सूत्र में वर्णन है-अनुत्तर विमान वासी देवों के अन्तर्मानस में यदि कोई जिज्ञासा समुत्पन्न होती है तो उन्हें मानव लोक में विशिष्ट आत्मज्ञानी के पास आने की आवश्यकता नहीं। वे वहीं से अपने विचारों को सम्प्रेषित करते हैं। मानव लोक में रहे हुए केवलज्ञानी उनके जिज्ञासागत भावों को पकड़ लेते हैं और बिना बोले ही मन से ही उन्हें उत्तर प्रदान करते हैं। जिससे उन देवों की जिज्ञासा का सम्यक् समाधान हो जाता है। यह है समीन विचार सम्प्रेषण । न प्रश्नकर्ता को बोलने की आवश्यकता है और न उत्तरप्रदाता को ।
शब्दों की शक्ति बहुत ही सीमित है । यों प्रत्येक शब्द में अनन्त धर्म रहे हुए हैं। अनंत,धर्मात्मक शब्द सर्वज्ञ के अनन्त धर्म में युगपत् दृष्टिगोचर होता है, पर वाणी से उन अनन्त धर्मों को एक साथ नहीं कह सकते। इस तथ्य को श्रीमद् राजचन्द्र ने कहा है
जे पद श्री सर्वज्ञे दीटुं ज्ञानमां,
कही शक्या नहीं पण ते श्री भगवान् जो । ते स्वरूप ने अन्य वाणी ते शुं कहे ?,
अनुभव गोचरमात्र रह्यु ते ज्ञान जो ॥
अनन्त धर्मात्मक वस्तु का स्याद्वाद के द्वारा एक शब्द से उसके अनन्तवें हिस्से का ही कथन किया जा सकता है। अतः तत्त्वज्ञानी शब्द के माध्यम को छोड़कर दूसरे माध्यम को विकसित करता है। तीर्थंकर प्रभु को वचनातिशय होता है जिससे देव, मानव-दानव, पशु-पक्षी आदि सभी अपनी-अपनी भाषा में तीर्थंकर की कही हुई बात को समझ लेते हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ के कार्यालय में ट्रांसलेटर यन्त्र लगे हैं. उसके माध्यम से एक भाषा में कही • हुई बात को विभिन्न राष्ट्रों से आये हुए व्यक्ति अपनी-अपनी मातृभाषा में समझ सकते हैं। वह यन्त्र एक भाषा का विभिन्न राष्ट्रों की भाषा में उसी क्षण अनुवाद कर देता है।
अतीतकाल में विचार सम्प्रेषण पद्धति अध्यात्मयोगियों में प्रचलित थी । गुरु हजार कोस दूर बैठे हुए शिष्य को अपनी बात मानस भाषा के द्वारा पहुँचा देता था और शिष्य भी अपने गुरु के पास अपनी जिज्ञासा प्रस्तुत कर देता था। दोनों ही एक दूसरे के मन की बात को पकड़ लेते थे। आधुनिक युग में विचार सम्प्रेषण के लिए टैलीपैथी के प्रयोग चल रहे हैं। परामनोविज्ञान विशेषज्ञ उसमें पर्याप्त मात्रा में सफल भी हुए हैं।
. यह स्मरण रखना होगा कि हम जिसे अपने मन की बात कहना चाहते हैं सामने वाला व्यक्ति ग्रहणशील है या नहीं। यदि दोनों ओर से ग्रहणशीलता और विधिवत् एकाग्रतापूर्वक प्रेषणशीलता होती है तो एक ही क्षण में उस मानस भाषा को ग्रहण कर
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