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मनःसंवर का महत्त्व, लाभ और उद्देश्य ८२९ मन के तीन स्तर : चेतन, अवचेतन, अतिचेतन .....
__मनोविज्ञान तथा योगदर्शन आदि में हम सामान्यतया मन के दो स्तरों का उल्लेख पाते हैं-सचेतन (स्थूल) मन और अवचेतन (अव्यक्त-सूक्ष्म) मन। मन की क्रियाशीलता के उन विभिन्न स्तरों को ये सूचित करते हैं। चेतनस्तर पर सभी क्रियाएँ सामान्यतः अहंभाव से युक्त होती हैं, जब कि अवचेतन स्तर पर अहंकार की भावना लुप्त (सुषुप्तअव्यक्त) रहती है। . .. इससे भी एक ऊँचा स्तर है, जिसमें मन अपनी शुद्ध अवस्था में होता है। आत्मा से उसका सीधा तादात्म्य-सा सम्बन्ध होता है। इस अवस्था में मन सापेक्ष चेतना के स्तर से भी ऊपर जा सकता है। इसे अतिचेतन स्तर कहते हैं।
जिस प्रकार अक्चेतन स्तर चेतनस्तर से ऊपर है, उसी प्रकार यह स्तर इस अवचेतन स्तर से भी ऊपर है। इसमें अहंभावना सर्वथा लुप्त (नष्टप्राय) हो जाती है। अतिचेतन स्तर पर आकर मन समाधिस्थ हो जाता है। ये तीनों स्तर हैं, एक ही मन के; परन्तु इनसे मन की क्रियाशीलता का माप हो जाता है।' ... जहाँ तक बाह्यरूप से (द्रव्यतः) मनोनिरोध (मनःसंवर) का प्रश्न है, वह चेतनस्तर के मन से सम्बन्धित है। चेतनस्तर पर मन सामान्यतया अहंभावना से युक्त होता है। वैदिक योगसाधनानुसार मन जब तक योग में प्रतिष्ठित नहीं हो जाता, तब तक अवचेतन मन सीधे (Direct) नियंत्रण (निरोध या संवर) में नहीं लाया जा सकता। अतिचेतन स्तर पर तो मन के निग्रह या संवर का प्रश्न ही नहीं उठता। वहाँ तो सहज संवर हो जाता है। अतिचेतनस्तर पर वे ही साधक पहुँच सकते हैं, जिन्होंने चेतन और अवचेतन स्तरों पर अपने मन को नियंत्रित-निरुद्ध (संवृत) कर लिया है। क्रियात्मक अन्तःकरण की चार वृत्तियां
मनोनिग्रह करके मन की शक्तियों को समुचित अभीष्ट दिशा में नियुक्त करने के .. लिए क्रियात्मक मन की वैदिक परम्परासम्मत चतुर्विध वृत्तियों को भी समझ लेना
चाहिए। वे चार वृत्तियाँ है-मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। ये चारों अन्तःकरण की ही पार वृत्तियों है। मन अन्तःकरण की वह वृत्ति है, जो किसी भी विषय के पक्ष-विपक्ष में संकल्प-विकल्प करती है। अन्तःकरण की निश्चय करने वाली वृत्ति को 'दुद्धि' कहते हैं। अन्तःकरण की पूर्वानुभूत वस्तु या विषय का स्मरण कराने वाली वृत्ति को 'चित' कहते है। और अन्तःकरण की अहंभावों से युक्त वृत्ति को 'अहकार' कहते हैं। प्रत्येक बाह्य इन्द्रियों से होने वाली संवेदना के साथ अन्तःकरण की ये चारों मानस-सम्बन्धित क्रियाएँ
... मन और उसका निग्रह (स्वामी बुधानन्द) से भावांश ग्रहण, पृ. ३१-३२
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