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मनःसंवर के विविध स्लप, स्वरूप और परमार्थ : ८५३ इन्द्रियों और मन से असंयत-असंवृत वही होता है, जो विषयसुखभोगों में आसक्त होता है। मनःसंवर का साधक असफलता मिलने पर हताश न होकर प्रबल उत्साह के साथ पुनःजुट जाए
वस्तुतः मानसिक संघर्ष तो प्रत्येक व्यक्ति में होता है; परन्तु वह संघर्ष निम्न प्रकृति के विषयों के दास बने हुए लोगों में विषय प्राप्ति के लिए होता है, जबकि मनस्वी एवं प्रबल इच्छाशक्ति वाले लोगों में मनःसंयम के लिए बार-बार संघर्ष युद्ध हुआ करता है, और उसमें उनकी जीत होती है। ____ आचारांग में मनःसंवर के साधकों को चेतावनी देते हुए कहा गया है-"तू अपने आप (मन) के (शत्रुओं के) साथ युद्ध-संघर्ष कर, बाह्य शत्रुओं के साथ युद्ध-संघर्ष करने से क्या लाभ ?"
. वस्तुतः अपने मन के शत्रुओं के साथ युद्ध की योग्यता बहुत दुर्लभ है। मनःसंवर के लिए अपर्याप्त प्रयल दुर्बल इच्छाशक्ति के सूचक हैं। अतः मनःसंवर के लिए खिलाड़ी की मनोवृत्ति रखनी चाहिए। खेल में हारने की सम्भावना के बावजूद भी खिलाड़ी हतोत्साहित नहीं होता। मनःसंवर के खिलाड़ी को भी मनोविकारों के साथ खेलते समय सदा सतर्कता, विनोदप्रियता, सहृदयता, रणचातुर्य, एवं शौर्य अपेक्षित है, जो सैकड़ों असफलताओं के बावजूद व्यक्ति को टूटने से बचाते हैं। . .
अतः मनःसंवर के लिए इच्छाशक्ति इतनी सुदृढ़ बनाई जाए कि यदि साधक बार-बार असफल हो जाए, तो भी निराश न हो, प्रत्युत मन संयम की प्रत्येक असफलता
उसमें नवीन उत्साह भर दे और पुनः मनोनिग्रह में नियुक्त कर दे। . .. ___ आचारांग में बताया गया है कि, "सतत अप्रमत्त-जागृत रहने वाले जितेन्द्रिय
वीर पुरुषों ने मन के समग्र द्वन्द्वों को अभिभूत करके अभीष्ट सिद्धि के दर्शन किये हैं। 'इच्छाशक्ति की दुर्बलता के कतिपय कारण
इच्छाशक्ति की दुर्बलता के कई कारण हैं, उन्हें दूर करने से वह प्रबल और सुदृढ़ हो सकती है। कई लोग मनोविकारों के साथ संघर्ष करते हैं, कई बार असफल होते हैं,
१. "उड्ढे अहं तिरिय मुच्छमाणे रूवेसु मुच्छति, सद्देसु यावि। एस लोगे वियाहिते।" ...
-आचारांग 9/9/५.सू.४१ २. (क) मन और उसका निग्रह (स्वामी बुधानन्द) से भावांश ग्रहण, पृ. ७-८ .. (ख) इमेणं, चेव जुन्झाहि, किं ते जुझेण बन्झओ। जुद्धारिहं खलु दुल्लह।" ।
_ -आचारांग श्रु.१ अ. ५ सू. ५२५, ५२६ (ग) वीरेहिं एवं अभिभूयं दिढ़ संजतेहिं सया अप्पमत्तेहि। -वही, श्रु.१, अ. १, उ. ४
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