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मनःसंवर का महत्त्व, लाभ और उद्देश्य ८०९
चेतना नहीं है। वह बोध स्वरूप आत्मा से, जिसका कि वह भीतरी यंत्र है, चेतना की आभा ग्रहण करता है और सबको उद्भासित करता है। यहाँ तक कि भौतिक प्रकाश भी इसी प्रकार मन के माध्यम से प्रकाशमान होता है। अपना स्वयं का प्रकाश न होते हुए भी मन प्रकाशमान प्रतीत होता है। ऐसा लगता है कि मन में ज्ञान की क्रिया होती है, पर वह स्वयं ज्ञानात्मक नहीं है, वह तो ज्ञान का करण अर्थात् साधन मात्र है। चेतना से उधार लिये हुए आलोक से प्रकाशमान होने के बावजूद मन ज्ञान का सक्षम साधन है। मन : एक पृथक भीतरी यंत्र
मन इन्द्रियों और शरीर से पृथक् है । वह पांच ज्ञानेन्द्रियों और पाँच कर्मेन्द्रियों की सहायता लिये बिना ही विचार, अनुभव, इच्छाशक्ति, कल्पना, स्मरण, हर्ष और विषाद की क्रियाएँ कर सकता है। इसी से यह प्रमाणित होता है कि मन इन्द्रियों से पृथक् एक भीतरी यंत्र है, जिसके माध्यम से उपर्युक्त क्रियाएँ सम्भव होती हैं।"
• बृहदारण्यक उपनिषद् के निम्नोक्त तर्क से मन एक पृथक् भीतरी यंत्र सिद्ध होता -"मेरा मन अन्यत्र था, इसलिए मैंने नहीं देखा । मेरा मन अन्यत्र था, इसलिए मैंने नहीं सुना।" (मनुष्य ऐसा जो कहता है, इसी से निश्चय होता है कि ) वह मन से ही देखता है और मन से ही सुनता है। काम, संकल्प, संशय, श्रद्धा, अश्रद्धा, धृति ( धारणाशक्ति), अधृति, लज्जा, बुद्धि, भय, ये सब (मन के) ही (कार्य) हैं। पीछे से स्पर्श किये जाने पर भी मनुष्य मन से जान लेता है। अतएव (मन) है।
मन की शक्तियाँ अकल्पनीय
यद्यपि मन स्वतंत्र कर्ता नहीं है। वह स्वतंत्रकर्ता आत्मा के अधीन एक यंत्र है। तथापि मन की शक्तियाँ अकल्पनीय हैं। मन की शक्तियों के सहारे ही मनुष्य ने अदृश्य अणु को तोड़कर उसकी ऊर्जा को प्रकट किया है तथा अव्यक्त अमूर्त आत्मा का अनुभव कर वह ज्ञानालोक से उद्भासित हुआ है। उपलब्धि के इन दो ध्रुवों के बीच मानव ने विभिन्न क्षेत्रों में जो भी उपलब्धियों की हैं, वे सभी मन की शक्तियों के द्वारा ही सम्भव हुई हैं।
भौतिक वैज्ञानिकों द्वारा मन की शक्ति का नापतौल
भौतिक वैज्ञानिकों ने मन की शक्ति का नापतौल करने का प्रयत्न किया है। उनके मतानुसार मन भौतिक शरीर की चेतना शक्ति (ऊर्जाशक्ति) है। आईन्स्टीन के शक्ति
१. (क) मन और उसका निग्रह (स्वामी बुधानन्द) से सारांश ग्रहण पृ. २८ (ख) "तमेव भान्तमनुभाति सर्वम् । तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ।" - कठोपनिषद् २/२/१५ २. बृहदारण्यक उपनिषद् १ / ५ / ३
३. मन और उसका निग्रह (स्वामी बुधानन्द) से पृ. २७
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