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मनःसंवर का महत्त्व, लाभ और उद्देश्य ८२३ उत्तम मानवीय सम्बन्धों की सौरभ भरी रहता है। समाज और राष्ट्र ऐसे व्यक्ति को सत्यं शिवं सुन्दर से ओतप्रोत आदर्श जीवन के धनी के रूप में पहचानने लगता है तथा उससे प्रेरणा लेता है। पृथ्वीकाय-संयम आदि १७ प्रकार के संयम, अथवा पंचानव-विरति, पंचेन्द्रिय-निग्रह, कषायजय, तथा दण्डत्रयविरति ये १७ प्रकार का संयम भी मनःसंयम से साधे जाते हैं।
... . .... जिसका मन नियंत्रित एवं संवृत है, वह मानसिक रोगों से मुक्त रहता है, तथा मानसिक तनाव से उत्पन्न शारीरिक पीड़ाएँ भी इससे दूर रहती हैं। मनोविजेता आत्मशक्ति का धनी एवं जगत्-विजेता ___ जो व्यक्ति अपने मन को वश में कर लेता है, उसका उच्चतर स्वभाव क्रियान्वित हो जाता है, उसकी सुषुप्त आत्मशक्तियाँ जाग्रत हो जाती हैं। उसके हितैषी एवं सुहृद्जन आश्चर्य करने लगते हैं कि यह उनके देखते ही देखते इतना महान् मनस्वी एवं अध्यात्मयोगी बन गया। एक महान् मनीषी ने कहा है--
- 'मनोविजेता जगतो विजेता : : "जो मन को जीत लेता है, वह सारे जगत् को जीत लेता है।" मनःसंवर या मनोनिरोध से प्राप्त होने वाली उपलब्धियाँ ... उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है-एक मन को जीत लेने पर चार कषाय और मन ये पाँचों जीते गए समझ लो। और इन पाँचों को जीत लेने पर पाँचों इन्द्रियों तथा ये पाँचों मिलकर कुल दस को जीत लेने पर सारे ही कषाय-नो-कषाय तथा पाँचों इन्द्रियों के २३ विषयों तथा २४० विकारों तथा उनके अन्य सहस्रों प्रकारों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। मन स्थिर एवं शान्त होने पर आत्मा में परमात्मतत्त्व की झलक । - आराधनासार' में तो स्पष्ट कहा गया है-मन के विकल्पों को रोकने से पर आत्मा परमात्मा बन जाता है।" कितनी बड़ी उपलब्धि है, मनोनिरोध या मनःसंवर
१. देखें-संयम के १७ भेद समवायागंसूत्र में पृथ्वीकायादि पाँच स्थावर, तीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय,
चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय संयम, प्रेक्षा संयम, उपेक्षा संयम आदि। प्रकारान्तर से संयम के १७ भेदपंचामवादिविरमणं पचिन्द्रियनिग्रह कषायजयः।
दण्डायविरतिश्चेति संयमः सप्तदशभेदः ॥ २. मन और उसका निग्रह (स्वामी बुधानन्द) से पृ. १२
३. "एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस। .... दसहा उ जिणित्ताणं सव्वसत्तू जिणामहं ॥"
. -उत्तराध्ययन २३ ४. "निग्गहिए मण पसरे, अप्पा परमप्पा हवइ।" .. -आराधनासार २०
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