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वचन-संवर की महावीथी ७६५
यह स्मरण रखना होगा कि वाक् संवर की परिपूर्णता के लिए उच्चारण स्थूल से सूक्ष्मातिसूक्ष्म होना चाहिये। स्थूल उच्चारण में ग्रन्थिभेदन की उतनी क्षमता नहीं होती जितनी सूक्ष्म उच्चारण में है। ज्यों-ज्यों उच्चारण सूक्ष्म होता चला जाएगा त्यों-त्यों उसमें शक्ति की अभिवृद्धि होती चली जाएगी। सूक्ष्मतम उच्चारण से वाक्संवर सिद्धि
जैन दार्शनिकों ने सूक्ष्म से सूक्ष्मतम उच्चारण की प्रतिक्रिया पर गहराई से चिन्तन किया है। जितना सूक्ष्म उच्चारण होगा उतनी ही वाणी स्थिर होगी। कर्मानवों के प्रवेश
और आगमन पर नियन्त्रण होगा। इस प्रकार की वाचा-शून्यता निर्विकल्पता और निर्वाचारिता संप्राप्त होगी, जो वाक्सवर की पूर्णता का रूप है। सूक्ष्म उच्चारणों से ग्रन्थियों का भेदन होने से सहज रूप से संवर की स्थिति प्राप्त हो जाती है। साधक सम्यक्त्व की दृष्टि, व्रत की दृष्टि, अप्रमाद और अकषाय की दृष्टि विकसित करता है और एक दिन अयोग संवर की स्थिति तक पहुँच जाता है।
हम यह अनुभव करते हैं, कितने ही व्यक्ति द्रुतगति से उच्चारण करते हैं तो कितने ही व्यक्ति मन्द स्वर में उच्चारण करते हैं। कितने ही व्यक्ति मध्यम गति से उच्चारण करते हैं तो कितने ही व्यक्ति मन्दतर स्वर में विलम्बित गति से उच्चारण करते हैं। इन चारों प्रकार के व्यक्तियों के उच्चारण में काफी अन्तर है। स्थूल उच्चारण की अपेक्षा सूक्ष्म उच्चारण अधिक प्रभावोत्पादक होता है। . योगदर्शन के अभिमतानुसार सुषुम्ना नाड़ी का सम्बन्ध ब्रह्म-रन्ध्र से है। ब्रह्म-रन्ध्र से एक रस का स्राव होता है। जो व्यक्ति बहुत तेजी से और शीघ्रता से उच्चारण करता है उस समय सुषुम्ना से अमृत बिन्दु के नौ बिन्दु स्रावित होते हैं। जो व्यक्ति मध्यम गति से उच्चारण करता है उस व्यक्ति के बारह बिन्दु नावित होते हैं और जो व्यक्ति शनैः शनैः विलम्बित गति से उच्चारण करते हैं उनके सोलह अमृत बिन्दु नावित होते हैं। यह नाव जितना अधिकतम होता है उतना लाभप्रद समझा जाता है।
____ सारांश यह है उतावली से, तेजी से बोलने की अपेक्षा धीमे-धीमे और लम्बी मात्रा के साथ बोलने पर उसकी शक्ति में अत्यधिक परिवर्तन आ जाता है। विलम्बित उच्चारण से शक्ति में अभिवृद्धि होती है। जितनी ध्वनि सूक्ष्मतम होगी वह उतनी ही अधिक लाभप्रद होगी। सूक्ष्मतम ध्वनि प्राण में पहुँच जाती है और उससे अधिक लाभ होता है। जप के जो तीन प्रकार हैं-भाष्य, उपांशु और मानस, उनमें मानस जाप सर्वोत्कृष्ट है। न बोलने से अनेक लाभ - कहावत है-'न बोल्या मां नव गुण' न बोलने से नौ गुण प्राप्त होते हैं। पहला लाभ यह है कि वाक्कलह उत्तेजना आदि नहीं होता। दूसरा लाभ है गाली, निन्दा, अपशब्द, असत्य आदि से बच जाता है। तीसरा लाभ यह है कि बोलने से जो शक्ति व्यय होती है वह
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