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इन्द्रिय-संवर का राजमार्ग ८०३ इसी प्रकार कान मनोज्ञ शब्द, ध्वनि, प्रशंसा, स्तुति आदि सुनने के लिए लालायित होते हैं, उन्हें दीन-दुःखियों की पुकार सुनने, अपने हित, कल्याण या उद्धार की बात सुनने, साधु-साध्वियों का सदुपदेश सुनने, वैराग्यवासित वाणी सुनकर संसार से विरक्ति पाने तथा भगवद्वाणी, भगवद् गुणज्ञान, स्तुति, स्तोत्र या वीतराग पुरुषों का चरित्र श्रवण करने में लगाना कर्णेन्द्रिय विषय-रस का मार्गान्तरीकरण है। मधुर, शान्तरस और वैराग्यरस के उद्दीपक अथवा कर्तव्य निर्देशक, वीतराग गुणगानात्मक भजन, कविता, संगीत सुनकर उसमें एकाग्र एवं तन्मय हो जाइए, ताकि अश्लील, कामोत्तेजक या क्रोधादि विकारवर्द्धक गीतों के श्रवण से बच सकें।
जिव्हेन्द्रिय के मार्गान्तरीकरण की पद्धति यह है कि जिह्वा से अश्लील, कठोर, कर्कश, हिंसाकारी, (जीववधप्रेरक), कामोत्तेजक, निश्चयकारक, फूट फैलाने वाले, विघटन कारक, छेदन-भेदन कारक शब्द या संगीत न बोलकर उससे भगवद्गुणगान, स्तुति, साधु-साध्वियों के गुणानुवाद, भगवद्भजन, उपदेशी कविताओं, या सद्गुणप्रेरक गान, स्तुति, न्यायनीति-धर्मबोधक मधुर संगीत का उच्चारण किया जाए, किसी को सत्परामर्श दिया जाए, सद्बुद्धि दी जाए, सन्मार्ग की प्रेरणा दी जाए। किसी की निन्दा, गाली, मर्मस्पर्शी, हृदयाघातजनक अपशब्द न कहे जाएँ। उसके बदले में त्याग, तप, व्रत, नियम आदि श्रुत चारित्र धर्म के विषय में चर्चा की जाए।
शब्दों में बहुत बड़ी शक्ति होती है, ध्वनि से विस्फोट होता है, ऑपरेशन, विद्युत् उत्पादन आदि अनेक कार्य ध्वनि से होते हैं। आधुनिक विज्ञान द्वारा संगीत की मधुर ध्वनि सुनाने से गायों में दुग्ध-उत्पादन में, तथा खेतों में अन्नादि-उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि हुई है।
प्राचीनकाल में छोटे-छोटे बच्चों को पालने में झुलाते-झुलाते माताएँ वीररस, शान्तरस और वैराग्य रस से ओतप्रोत लोरियों के रूप में संगीत सुनाती थीं, जिसके संस्कार उन बच्चों में अमिट होते थे। किसी को गाली देने या उसे बार-बार झिड़कने और हतोत्साहित करने से उसका हृदय, मन, इन्द्रियाँ, अंगोपांग, निराश, उदास होकर मुर्दा जाएँगे। इसके विपरीत प्रशंसा करने से प्रफुल्ल हो जाते हैं। . वनस्पति जगत् पर भी निन्दा और गाली का, प्रशंसा और प्रोत्साहन का अचूक प्रभाव पड़ता है तो मनुष्यों और पशुओं की तो बात ही क्या? और तो दूर रहा, व्यक्ति स्वयं भी यदि बार-बार प्रशस्त, हितकर एवं अभीष्ट शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श का सम्पर्क बार-बार पाता है तो उसका शरीर, इन्द्रियाँ, मन, हृदय और यहाँ तक कि समग्र जीवन भी प्रफुल्लित-प्रोत्साहित और आनन्दित हो जाता है। इसी प्रकार अभीष्ट, प्रशस्त एवं हितकर रंग और रूप का सम्पर्क भी व्यक्ति के जीवन पर, स्वास्थ्य पर और मन पर अच्छा प्रभाव डालता है।
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