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नदी में बाढ़ को रोकने के लिए बाँध का प्रयोग
नदी में पानी जब चारों ओर से झरनों, नालों आदि से तीव्र गति से आ-आकर मिलने लगता है, तब उसमें बाढ़ आ जाती है। बाढ़ के समय नदी प्रलयंकर और भयंकर बन जाती है। जो नदी पहले वृक्षों, पेड़-पौधों, फसलों, जानवरों और मनुष्यों को जीवन-दान देने वाली थी, वही बाढ़ के आने पर उनके जीवन-विनाश का कारण बन जाती है। हजारों लोग बाढ़ से पीड़ित होकर बेघरबार हो जाते हैं। करोड़ों रुपयों की फसल बर्बाद हो जाती है। करोड़ों रुपयों के माल की बर्बादी हो जाती है। धन-जन की क्षति का भी कोई अनुमान नहीं ।
आस्रव की बाढ़ और संवर की बांध
इस भयंकर विनाशलीला को रोकने के लिए शासन-प्रबन्धक लोग चिन्तित हो उठते हैं। और नदी में प्रतिवर्ष आने वाली इस बाढ़ को रोकने के लिए कई जगह बाँध (Dam) बनाये जाते हैं, जिनसे उसके प्रवाह को कई जगह से रोक कर दूसरी दिशा में उस पानी को बहाया जाता है, जिससे लाखों एकड़ खेतों को सींचा जाता है। इस प्रकार के. बांधों से नदी की जीवनदायिनी शक्ति का यथार्थ उपयोग किया जाता है।
सांसारिक आत्मनदियों में आई हुई बाढ़ से भंयकर क्षति
सांसारिक आत्मारूपी नदियों में भी प्रतिक्षण शुभाशुभ कर्मों का आगमन (आनव) होता रहता है। मुख्यतया तीन बड़े-बड़े नाले हैं-मनोयोग, वचनयोग और काययोग ।' इन्हीं तीन नालों के साथ तीव्रगति से बहते हुए मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद और कषाय के चार पहाड़ी झरने आकर मिल जाते हैं। यों तो मनोयोग के चार, वचनयोग के चार और काययोग के सात यों कुल पन्द्रह भेद होते हैं, ' तथा मिथ्यात्व के
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इन पर विस्तृत विवेचन "योग-आनव : स्वरूप, प्रकार और कार्य" में देखें। -सं. कषाय के विषय में विशेष विवेचन के लिए देखें- 'कर्मों के आने के पाँच आनवद्वार' नामक निबन्ध में।
३. योग के इन पन्द्रह भेदों के विशेष विवेचन के लिए 'योग- आम्रव: स्वरूप, प्रकार और कार्य' नामक निबन्ध देखें।
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