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काय-संवर का स्वरूप और मार्ग ७३१ दृष्टियों से शरीर का नाप-तौल करता है। वह अनुप्रेक्षण करता है कि शरीर के द्वारा क्या-क्या अच्छाइयाँ हो सकती हैं, कौन-सी बुराइयाँ पनप सकती हैं ? अध्यात्मसार में ठीक ही कहा है
"येनैव देहेन विवेकहीनाः संसारमार्ग परिपोषयन्ति।
तेनैव देहेन विवेकभाजः संसारमार्ग परिशोषयन्ति ॥” जिस शरीर से अविवेकीजन (विविध आसवों का सेवन करके) संसार मार्ग को परिपुष्ट करते हैं, उसी शरीर से विवेकीजन (संवर की साधना करके) संसारमार्ग का परिशोषण करते हैं, अर्थात् हास करते हैं। शरीर एक प्रेक्षण-अनुप्रेक्षण के दृष्टिकोण अनेक
- इस प्रकार एक ही शरीर का अनेक प्रकार से, विभिन्न दृष्टियों से प्रेक्षणअनुप्रेक्षण हो सकता है। स्थूल दृष्टि वाले व्यक्ति के द्वारा शरीर-प्रेक्षण सौन्दर्य, सौष्ठव आदि दृष्टि से होता है, वह स्थूल प्रेक्षण है। दूसरा उससे सूक्ष्म प्रेक्षण है, वह चिकित्सक आदि द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य आदि की दृष्टि से शरीर के अंगोपांगों एवं इन्द्रियों एवं उनके कार्यों की जाँचपड़ताल करना है। तीसरा सूक्ष्मतम प्रेक्षण है। वह एक आध्यात्मिक साधक के द्वारा शरीर से साधना के विभिन्न दृष्टिकोणों, पहलुओं तथा साधकता बाधकता के विविध तथ्यों की दृष्टि से अत्यन्त बारीकी से किया गया निरीक्षणअनुप्रेक्षण है। कायसवर की दृष्टि से ही यहाँ शरीर का अनुप्रेक्षण अपेक्षित _कर्मविज्ञान में शरीरसंवर के परिप्रेक्ष्य में अध्यात्म-साधक द्वारा किया गया सूक्ष्मतम शरीर प्रेक्षण ही विवक्षित एवं ग्राह्य है। यद्यपि कर्मविज्ञान में शरीर प्रेक्षण पर संवर के अतिरिक्त नामकर्म, गोत्रकर्म, वेदनीय कर्म आदि के माध्यम से, काययोग के विभिन्न प्रकारों एवं पहलुओं के माध्यम से भी चिन्तन प्रस्तुत किया गया है, जो शरीरशास्त्र, गर्भशास्त्र, आहारशास्त्र, मनोविज्ञान, जीवविज्ञान, आदि के साथ भी मेल खाता तथापि प्रस्तुत प्रकरण में हमें काय-संवर की दृष्टि से चर्चा-विचारणा करना अपेक्षित
शरीर का हमें संवर साधना की दृष्टि से अनुप्रेक्षण-पर्यवेक्षण करना है, क्योंकि साधना (संवर-निर्जरा) की दृष्टि से शरीर आध्यात्मिक विकास के लिए बहुत उपयोगी है।यही हमारी सारी आत्मशक्ति का अधिष्ठान, केन्द्र, आयतन या पावरहाउस है। इतना
१. अध्यात्मसार (उपाध्याय यशोविजयजी) २. चेतना का ऊर्ध्वारोहण से भावांश ग्रहण पृ. ३८
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