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वचन-संवर की महावीथी
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भारतीय मन्त्र-शास्त्रविद और योग विद्या के गहन अभ्यासी चिन्तक शब्द शक्ति के चमत्कार के सम्बन्ध में बहुत पहले प्रकाश डाल चुके हैं। अब तो वैज्ञानिकों ने प्रयोग कर उन सत्य तथ्यों को स्पष्ट कर दिया है कि ध्वनि तरंगों का व्यक्ति के अन्तर्मानस पर, विचारों पर और उसके तन पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। ___अतीतकाल में इस प्रकार के संगीतज्ञ थे जो ताल और लय से गीत अलापते जिसका प्रभाव मानवों पर ही नहीं पशु-पक्षी जगत् पर और वनस्पति जगत् पर भी पड़ता था। मेघराग की ध्वनि से आकाश में उमड़-घुमड़ कर घटाएँ आतीं और वर्षा होने लगती। दीपकराग के गाने पर दीपक प्रज्वलित हो उठते। इस प्रकार के राग में संगीत प्रस्तुत करते जिससे चारों ओर शोक के बादल छा जाते और इस प्रकार राग का प्रयोग करते कि हंसी के फब्बारे छूट पड़ते। ___आज भी डेनमार्क और हॉलैण्ड में संगीत की ध्वनि सुनाकर गायों को दूहते हैं, जिससे वे अधिक दूध देती हैं। संगीत की स्वरलहरियों को सुनकर सर्प भी डोलने लगते हैं। हिरण मोहित हो जाते हैं। उन्हें सुध भी नहीं रहती। फलस्वरूप वे पकड़े जाते हैं। संगीत की ध्वनियाँ अपूर्व हलचल समुत्पन्न कर देती हैं। शरीररूपी वाद्ययन्त्र का संगीत : नाद ब्रह्म का आनन्द
योगियों का मानना है कि शरीर भी एक वाद्ययन्त्र है। इसमें षट्चक्र और सप्तम सहनार कमल इस सप्त स्वरात्मक संगीत का आधार है। प्रस्तुत वीणावाद्यरूप शरीर का मध्य भाग मेरुदण्ड है, ऊर्ध्वभाग मस्तिष्क है और नीचे का भाग नितम्बक्षेत्र है। नाक द्वारा पहुँचने का क्रम ईड़ा और पिंगला के रूप में दो अंगुलियाँ हैं जिनकी सहायता से दिव्य ध्वनियाँ प्रवाहित होती हैं। यदि इनका संगीत सुना जा सके तो ऐसा अनुभव होगा कि नाद ब्रह्म का श्रवण ब्रह्मानन्द सदृश चित्ताकर्षक और आह्लादकारी है। सप्त स्वर से शरीर में लगे सूक्ष्म शक्ति स्रोतों का जागरण
संगीत और वाद्य यन्त्रों में सातों स्वर एक व्यवस्थित क्रम शृंखला से संलग्न होते हैं। अमुक राग में बजाने के लिए अंगुलियों का संचालन एक विशिष्ट क्रम से किया जाता है। ठीक वही प्रक्रिया शरीर में लगे सूक्ष्म शक्ति स्रोतों की मूर्च्छना जगाकर प्रखरता उत्पन्न करने के लिए क्रियान्वित की जाती है।' शब्द की गति धीमी, दृश्य के बाद श्रव्य की पहुँच
आमतौर पर शब्द की गति बहुत धीमी है। वह सिर्फ कुछ सौ फीट प्रति सैकिंड चल पाती है। तोप चलने पर धुंआ पहले दीखेगा, धड़ाके की आवाज बाद में सुनाई देगी।
... १. अखण्ड ज्योति मार्च १९७६ पृष्ठ ९ से ११ भावांश उद्धृत
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