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काय-संवर का स्वरूप और मार्ग ७४७
वाले हैं। कर्मशरीर ही आत्मा का सबसे बड़ा बाधक और मोक्षमार्ग में विघ्नकर्ता है। इसे हटाने के लिए स्थूलशरीर का द्वार कायगुप्ति के द्वारा बन्द करो।" स्थूलशरीर का देहाध्यास कैसे समाप्त हो? ___ जब आत्मदर्शन की तीव्रता, आत्भरमणता की तड़फन अथवा आत्मानन्द की गहरी अनुभूति होने लगेगी, तब स्थूलशरीर का भान या देहाध्यास समाप्तप्राय हो जाएगा। मनुष्य जितना-जितना देहाध्यास, या शरीर का ध्यान या भान करता है, उतनी-उतनी चंचलता बढ़ती जाएगी, स्थिरता एवं शान्ति कम होती जाएगी।जब उसका ध्यान आत्मा में केन्द्रित हो जाएगा, वह आत्मा में तन्मय हो जाएगा, तब उसकी शरीर के प्रति पकड़, या शरीरासक्ति क्षीण एवं मन्द होती चली जाएगी।
___ अपना ध्यान आत्मकेन्द्रित करने के लिए वह आचारांग सूत्र के एकत्वानुप्रेक्षा के निर्देशानुसार यह चिन्तन करे कि "मैं अकेला हूँ। मेरा कोई नहीं है, और न ही मैं भी किसी का हूँ।" इस प्रकार वह अपनी आत्मा को एकाकी समझे। सामायिक पाठ के अनुसार-“मेरी आत्मा सदैव एकाकी और शाश्वत है, वह विनिर्मल (विशुद्ध) है, ज्ञानदर्शनादि स्वभाव वाला है, दूसरे समस्त पदार्थ आत्मबाह्य हैं, वे (शरीरादि) कों से प्राप्त और अशाश्वत हैं।
___ इस प्रकार शरीर और आत्मा दोनों को भिन्न समझकर अपने (आत्मा के) अस्तित्व पर ध्यान टिकाया जाएगा, तो वह आत्मा और शरीर दोनों को तलवार और म्यान की तरह पृथक्-पृथक् स्वरूप वाले समझने लगेगा। आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व उसके मन मस्तिष्क में जम जाएगा, तब देह के प्रति अहंकार, ममत्व, आसक्ति या मूर्छा स्वतः क्षीण होती जाएगी, फलतः चंचलता भी विदा होने लगेगी।
__ यद्यपि आत्मा और शरीर दोनों मिले हुए प्रतीत होते हैं, शरीर आत्मा के अत्यन्त निकट और दृश्यमान है, तथापि भेद-विज्ञान हृदय में जागृत होने पर गेहूँ में से कंकर की तरह आत्मा को शरीर से पृथक् करना मन से निकाल देना, कोई कठिन नहीं है। भगवान्
१. महावीर की साधना का रहस्य से किञ्चित् भावांश ग्रहण पृ. ५३ २. (क) वही पृ. ५४ ' (ख) एगो अहमंसि, न मे अत्थि कोइ, न वाऽहमवि कस्सइ।
एवं से एगागिणमेव अप्पाणं समभिजाणिज्जा ॥ -आचारांग १/५/६/२२२ (ग) एकः सदा शाश्वतिको ममात्मा, विनिर्मलः साधिगम स्वभावः । .. बहिर्भवाः सन्त्यपरे समस्ताः, न शाश्वताः कर्मभवाः स्वकीयाः ॥ (घ) शरीरतः कर्तुमनन्त शक्तिं विभिन्नमात्मानमपास्त दोषम् । जिनेन्द्र ! कोषादिव खड्गयष्टिं तव प्रसादेन ममाऽस्तु शक्तिः ॥
-अमितगतिः सामायिक पाठ,
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