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- आम्रव मार्ग संसारलक्ष्यी और संवरमार्ग मोक्षलक्ष्यी ७०३
सांसारिक पदार्थों के संग (आसक्ति) से विरत हो जा, इनसे दूर रह, कर्मबन्धन में फंसाने वाले प्रपंचों को छोड़ दे। असंयम में गिराने वाले प्रयलों का त्याग कर। मोह का विसर्जन कर, और स्वतत्त्व को समझ। अपनी वृत्तियों का बार-बार निरीक्षण कर कि वे किस दिशा में जा रही हैं? अपने आत्मस्वरूप को पहचान और परम शान्तिरूप मोक्ष का आनन्द प्राप्त करने हेतु सत्पुरुषार्थ कर।"
तात्पर्य यह है कि संवरमार्ग पर प्रयाण करने पर देर में सही, थोड़ी ही सही, पर जो सफलता और सिद्धि मिलेगी, वह स्थायी भी होगी और आत्मशान्तिदायक भी।
निष्कर्ष यह है कि आसव मार्ग संसार परिभ्रमण कारक है, और संवर मार्ग हैसर्वकर्म-मुक्तिरूप मोक्षप्रापक, परमात्मपद तक पहुँचाने वाला। कर्मानवों से मुक्त होने के लिए संवर मार्ग को अपनाना ही श्रेयस्कर है, चाहे वह प्रारम्भ में इष्ट संयोग कारक या सुख-सुविधाजनक न हो।
.. विरम विरम संगात् मुंच मुंच प्रपंचम्। विसृज विसृज मोहं विद्धि विद्धि स्वतत्त्वम् ॥१॥
कलम कलम वृत्तं, पश्य पश्य स्वरूपम्। कुरु कुरु पुरुषार्थ निर्वृतानन्दहेतोः ॥२॥
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