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आम्रव की बाढ़ और संवर की बांध ७०५
पाँच, दस या पच्चीस प्रकार, अविरति के मुख्य पाँच प्रकार, प्रमाद के पाँच या आठ प्रकार,' एवं कषाय के चार, सोलह या पच्चीस प्रकार होते हैं। इसके अतिरिक्त अव्रत, कषाय, इन्द्रिय विषय और क्रिया तथा पूर्वोक्त तीन योग मिलाकर आसव के ४२ भेद होते हैं।
परन्तु संसार के प्रत्येक जीव की अनन्त-अनन्त परिणामों की तीव्र-मन्द-मध्यम धाराएँ इनके साथ मिलने से आसवों का अनन्तगुना प्रवाह बाढ़ का रूप धारण कर लेता है। सांसारिक जीवात्मारूपी नदियों में कर्मानवों की यह भयंकर बाढ़ भी उस-उस आत्मा के स्वामी जीव की अनन्त शक्तियों को मूर्च्छित कर देती है, उसके अनन्तज्ञान एवं अनन्तदर्शन को आवृत और कुण्ठित कर देती है, उसके अनन्तचारित्र एवं तप की शक्ति को भी मोहमूढ़ बना देती है। आम्रवों की यह बाढ़ जीव के आत्मगुणों का चारों ओर से सर्वनाश करने पर उतारू हो जाती है। कर्माम्रवों की बाढ़ से एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक प्रभावित
आम्नवों की यह बाढ़ सबसे अधिक प्रभावित करती है-वनस्पतिकायिक, अप्कायिक, पृथ्वीकायिक, तेजस्कायिक एवं वायुकायिक, इन पंचविध स्थावर एकेन्द्रिय जीवों को। इनकी चेतना को कर्मानवों की यह बाढ़ अत्यन्त मूर्छित एवं सुषुप्त कर देती है। इनमें भी पंचेन्द्रिय जीवों के समान ही ज्ञानादि अनन्तचतुष्टय विद्यमान होते हैं, किन्तु उन पर सघन आम्नवों का आवरण पड़ जाता है। यद्यपि एकेन्द्रिय जीवों के भी लब्धिरूप पाँचों भावेन्द्रिय होती हैं, किन्तु चेतना सुषुप्त होने से उपयोगरूप भावेन्द्रिय इतनी सक्रिय. नहीं होती; और निवृत्ति (रचना) और उपकरण रूप द्रव्येन्द्रियों में भी सिर्फ एक स्पर्शेन्द्रिय होती है। एकेन्द्रिय जीव अपने सुख-दुःख का संवेदन मूर्छितचेतनाशील होने से बहुत ही कम कर पाते हैं और न ही अपने सुख-दुःखादि को व्यक्त कर सकते हैं। ___इन एकेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा द्वीन्द्रिय जीवों पर कर्मानवों की बाढ़ का कुछ कम असर होता है। द्वीन्द्रिय जीवों के स्पर्शेन्द्रिय और रसनेन्द्रिय होने से ये अपनी सुख-दुःख की अभिव्यक्ति अव्यक्त भाषा के रूप में कर पाते हैं। इससे भी आगे बढ़कर त्रीन्द्रिय और फिर चतुरिन्द्रिय जीवों में उत्तरोत्तर क्रमशः घ्राणेन्द्रिय और नेत्रेन्द्रिय अधिक होने से इन
१. प्रमाद के आठ प्रकार ये हैं
(१) अज्ञान, (२) संशय, (३) मिथ्याज्ञान, (४) राग, (५) द्वेष, (६) स्मृति भ्रंश, (७) धर्माचरण में अनादर और (८) योग-दुष्प्रणिधान।।
__ -प्रवचनसारोद्धार २०७ २. मिथ्यात्वादि पाँचों के भेद-प्रभेद के विषय में देखें-"आसव की आग के उत्पादक और उत्तेजक"
शीर्षक निबन्ध। ३. अव्रत आदि पाँचों आम्रवाद्वारों के विषय में देखें-'कर्मों का आसव : क्या, क्यों, कैसे और
कितने प्रकार का?' निबन्ध।
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