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पुण्य : कब और कहाँ तक उपादेय एवं हेय?
महावन के महायात्री के समक्ष सुखद और दुःखद दृश्य
अनेक महायात्री हैं। उनका गन्तव्य स्थान बहुत दूर है। उन्हें तीन या फिर अधिक से अधिक चार दिनों में ही अपने गन्तव्य स्थान पर पहुँच जाना है। परन्तु रास्ते में एक विशाल वन आगया। वन इतना सघन है कि कहीं हरे-भरे पेड़-पौधे हैं, वक्षों से लिपटी बेलें और घनी झाड़ियाँ हैं, कहीं-कहीं सूखे वृक्षों के दूँठ खड़े हैं, कहीं ऊबड़-खाबड़ घाटियाँ हैं, कहीं संकड़ी पगडंडी हैं। कहीं हिंन्न जन्तुओं के रहने के खोह और गुफा हैं। कहीं भयंकर गहरा बीहड़ है। कहीं कंटीले झाड़ हैं। सों के बिल भी हैं। वह वन कहीं अत्यन्त रमणीय और फलदार वृक्षों से भरा है, और कहीं वह अत्यन्त सघन तथा दिन में भी घोर अन्धकारमय होने के कारण भयंकर लगता है।
अगर यात्री उस गहन वन में सही पगडंडी न पकड़ कर जल्दी पहुँचने के लोभ में या भ्रान्ति से ऐसी पगडंडी पकड़ लेता है जो उसे घोर वन में भटका देती है। जहाँ उसे कोई भी पथ-प्रदर्शक या हमराही नहीं मिलता। वह उसी वन में भटकता हुआ कभी किसी हिन. पशु का शिकार हो सकता है, या भूख और प्यास से पीड़ित होकर अपने गंतव्य से हाथ घो सकता है।
- अथवा यदि वह यात्री कहीं वन की नैसर्गिक रमणीयता एवं फलवान् वृक्षों की पंक्ति देखकर थोड़ी देर तक विश्राम लेकर तरोताजा होकर आगे बढ़ने के बदले वहीं ठिठक कर बैठ जाएं, वहीं सदा के लिए अपना आसन जमा ले, अपने गन्तव्य स्थान पर पहुंचने का भान भूल जाए और वहाँ से आगे बढ़ने का नाम न ले तो उस विपिन• सौन्दर्यासक्त यात्री की दशा भी संकटापन्न हो सकती है। ... वहाँ भी धरती पर रेंगने वाले विषैले सर्प, बिच्छू या अन्य जन्तु उसे अपना आहार बना सकते हैं, अथवा नैसर्गिक सौन्दर्य का आनन्द लूटने के लिए रात्रि में विचरण करने वाले सिंह, व्याघ्र, भालू या भेड़ियों का आतंक यदा-कदा उसे भयभीत, चिन्तित और संतप्त कर सकता है, उस पर आक्रमण करके उसे मौत का मेहमान भी बना सकता
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