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योग-आम्रव : स्वरूप, प्रकार और कार्य ६१७ आलम्बन-भेद से योग के तीन प्रकार :मनोयोग, वचनयोग, काययोग
चूंकि कर्मों का ग्रहण अकेले मन से ही नहीं होता, वचन से भी होता है और काया की क्रिया या प्रवृत्ति से भी होता है; और योग की परिभाषा भी यही है कि वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम या क्षय से तथा पुद्गलों के अवलम्बन से होने वाले आत्मप्रदेशों का परिस्पन्दन (कम्पन व्यापार)। इसलिए आलम्बन-भेद से योग के तीन प्रकार हो जाते हैंमनोयोग, वचनयोग और काययोग।' मनोयोग के विभिन्न लक्षण ____ 'सर्वार्थसिद्धि' में मनोयोग का विशद लक्षण इस प्रकार है-'आभ्यन्तर वीर्यान्तराय और नोइन्द्रियावरण के क्षयोपशमरूप आन्तरिक मनोलब्धि के होने पर तथा बाह्य निमित्तभूत मनोवर्गणाओं का आलम्बन मिलने पर मनःपरिणामों के सम्मुख हुए आत्मप्रदेशों का परिस्पन्द मनोयोग कहलता है।"
'धवला' में इसका संक्षिप्त लक्षण यों दिया है-मन की समुत्पत्ति के लिए जो प्रयल होता है, उसे मनोयोग कहते हैं। इसी ग्रन्थ में इसकी व्यापक परिभाषा दी गई है-“सत्य आदि चार प्रकार के 'मन' में जो अन्वयरूप से रहता है, उसे सामान्य मन कहते हैं। उक्त मन से उत्पन्न हुए परिस्पन्द लक्षण वीर्य के द्वारा जो योग होता है, उसे मनोयोग कहते
. धवला में मनोयोग के दो लक्षण और दिये गए हैं-"(१) मनोवर्गणा से निष्पन्न
हुए द्रव्यमन के अवलम्बन से जीव का जो संकोच-विकोच होता है, वह मनोयोग है।" (२)“बाह्य पदार्थ के चिन्तन में प्रवृत्त हुए मन से उत्पन्न जीव (आत्म) प्रदेशों के परिस्पन्द का नाम मनोयोग है। मनोयोग के चार भेद ... षट्खण्डागम, गोम्मटसार (जीव काण्ड) तथा स्थानांग, समवायांग आदि आगमों में मनोयोग के शुभाशुभत्व की दृष्टि से चार भेद किये गए हैं-(१) सत्यमनोयोग, (२)
१. तत्त्वार्थसूत्र (पं. सुखलाल जी) पृ. १४८ २. (क) सर्वार्थसिद्धि ६/१/३१८/११ . (ख) धवला १/१, १, ५0/३८२
(ग) वही, १/१, १, ६५/३०८ (घ) वही, ७/२, १, ३३/७६ (ङ) वही, १0/४, २, ४, १७५/४३७
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